श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “धड़का तो होगा दिल जरूर”।)

?अभी अभी # 200 ⇒ धड़का तो होगा दिल जरूर… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

यह शाश्वत और सनातन प्रश्न आपसे पूछने वाला मैं कोई पहला व्यक्ति नहीं, लेकिन कल के फाइनल मैच के दौरान आपके दिल की क्या हालत हुई होगी, आप ही बेहतर जानते होंगे। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं, यही प्रश्न सबसे पहले फिल्म सीआईडी ९०९ (१९६७) में, कुछ इस अंदाज में, पूछा गया था ;

धड़का तो होगा दिल जरूर

किया जो होगा तुमने प्यार

बड़ा बचकाना सा सवाल है यह, लेकिन कल तो इस दिल की हालत बयां की ही नहीं जा सकती थी। क्या कहते हैं उसे, दिल कभी तो धड़क धड़क करता था, तो कभी धक से रह जाता था। हमेशा बल्लियों उछलने वाला यह दिल सांस रोके पूरा मैच देख रहा था। कल किस किसको याद नहीं किया हमने। अपनी इबादत में कोई कसर नहीं छोड़ी।

२४० रनों का भी कोई टारगेट होता है कंगारुओं के लिए ! लेकिन जब शुरू में ही ऑस्ट्रेलिया के तीन विकेट जल्दी जल्दी गिर गए, तो हमारे होठों पर, आपकी परछाइयां के गीत की ये पंक्तियां अनायास ही आ गई ;

दिल की ऐ धड़कन ठहर जा,

मिल गई मंजिल मुझे ..

अंपायर की उंगली का आउट होने का इशारा दिल को कितना सुकून दे रहा था, और होंठ भी कहां खामोश थे ;

जी हमें मंजूर है

आपका ये फैसला।

हर नज़र कह रही है

बंदा परवर शुक्रिया।।

दिल की धड़कनें तेज थीं, बस तड़ातड़ हमारा शमी, शनि बनकर सात विकेट और झटका ले, और पूरे स्टेडियम में तालियों और आतिशबाजियों का शोर गूंजे, और देश में हर तरफ बजने लगें, सैकड़ों शहनाइयां।।

लेकिन कुदरत का ही खेल निराला नहीं भाई, क्रिकेट का खेल भी निराला। बल्ले से खेलो, बॉल से खेलो, पूरी शिद्दत से खेलो, लेकिन हम क्रिकेट प्रेमियों के दिल से तो मत खेलो।

कल विश्व पुरुष दिवस अलग से था। जब तीन विकेट गिरने के बाद कंगारू बल्लेबाजों ने अंगद की तरह पांव जमा लिए, तो हमारे भी हौसले पस्त हो गए और जब तक चौथा विकेट गिरा तब तक तो कारवां गुजर चुका था, चारों तरफ गुबार ही गुबार और fogg ही fogg था।।

मत पूछो, कितनी बार दिल धड़का। पहली बार हमें महसूस हुआ, हमारा भी दिल धक धक करता है।

जीत का नशा सर चढ़कर बोलता है, हार को तो, बस थक हारकर स्वीकार किया हमने। दिल तो टूटा ही होगा ;

मैं कोई पत्थर नहीं

इंसान हूं।

कैसे कह दूं,

हार से घबराता नहीं।।

यह पुरुषोचित तो नहीं, लेकिन कल पुरुष दिवस पर मन बड़ा दुखी हुआ। उड़ा लीजिए आप हमारी कमजोरी का मजाक, लेकिन आज तो कहकर ही रहूंगा मन की बात। अरे सुनती हो, कहां गई भागवान;

मुझे गले से लगा लो

बहुत उदास हूं मैं….

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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