श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जश्न और त्रासदी “।)
अभी अभी # 202 ⇒ || संकेतक || श्री प्रदीप शर्मा
|| संकेतक || ~ signal ~
समझदार को इशारा काफी होता है, और डूबते को तिनके का सहारा। लेकिन कुछ सहारे श्री, खुद ऐसे टाइटैनिक होते हैं जो अपने साथ तिनकों को भी ले डुबो बैठते हैं। एक गलत इशारा हमारी मंजिल को भटका भी सकता है और एक संकेतक हमें अपनी मंजिल तक भी पहुंचा सकता है।
जीवन के सफर में मंजिल तक पहुंचने के लिए, हमें कोई ना कोई रास्ता तो चुनना ही पड़ता है। जहां कोई मार्गदर्शक नहीं होता, वहां संकेत ही काम आते हैं। गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है। यह सीटी संकेत भी है और एक तरह का अलार्म भी। चलिए, सिर्फ एक सीटी नहीं ! एक, दो, तीन के बाद कभी चार की गुंजाइश नहीं रह जाती। टेशन से गाड़ी छूट जाती है, एक, दो, तीन हो जाती है।।
शहर के भीड़ भरे यातायात को सुचारू रूप से चलाने के लिए, चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल लगाए जाते हैं। लाल, हरी और पीली बत्ती का मतलब कौन नहीं जानता। और तो और हमारे इंजन वाले वाहनों में भी आवाज वाले इंडिकेटर्स लगे होते हैं, कार को रिवर्स लेते वक्त भी अलार्म हमें आगाह किया करता है। फिर भी ;
ना तूने सिग्नल देखा
ना मैने सिग्नल देखा
एक्सीडेंट हो गया
रब्बा रब्बा …
इसे क्या कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना कहें, अथवा सरासर लापरवाही। पहले नजरों के इशारे हुए, फिर दिल से दिल टकराए, ना कोई खता हुई ना कोई थाने में रिपोर्ट, ना कोई दफा। दोनों गिरफ्तार भी हुए। लेकिन फिर भी मामला रफा दफा।
अगर हमारे जीवन के माइल स्टोन में, संकेतक और सूचक नहीं होते, तो क्या हमारी जिंदगी की राह इतनी आसान होती। एक छोटी सी उंगली का सहारा किसी की जीवन नैया को अगर पार लगा सकता है तो एक गलत सलाह आपके जीवन को बर्बाद और तबाह भी कर सकती है ;
माॅंझी नैया ढूॅंढे किनारा
किसी ना किसी की खोज
में है ये जग सारा।
कभी ना कभी तो समझोगे
तुम ये इशारा
माॅंझी नैया ढूॅंढे किनारा।।
किसी के स्पर्श मात्र से मन का बोझ हल्का हो जाता है तो किसी की छोटी सी सलाह अथवा मार्गदर्शन से इंसान कहां से कहां पहुंच जाता है। छोटे छोटे इशारों और संकेतों में ही जीवन के रहस्य छुपे हैं। कहीं कोई रहबर, तो कहीं किसी सदगुरु का इशारा ही काफी होता है कश्ती को किनारे लाने में और जीवन नैया को पार लगाने में।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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