श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आसमान से गिरे”।)
अभी अभी # 205 ⇒ आसमान से गिरे… श्री प्रदीप शर्मा
अगर आपके पास पैराशूट नहीं है, और आप आसमान से जमीन पर गिरते हैं, तो आपका तो भगवान ही मालिक है। ऐसी स्थिति में अगर आप जमीन पर गिरने की जगह
खजूर में ही अटक जाएं, तो शायद आप भी खजूर को ही दोष दें, आसमान से गिरे, और खजूर में अटके।
बेचारा खजूर तो नेकी कर, दरिया में भी नहीं डाल सकता क्योंकि बद अच्छा बदनाम बुरा। और खजूर तो पहले से ही बदनाम है;
बड़ा हुआ तो क्या हुआ,
जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं
फल लागे अति दूर।।
इंसान को आसमान से गिरने की कोई चिंता नहीं, हो सकता है उसका जीवन बीमा हो। लेकिन अगर खजूर पर अटक गया तो कौन निकालेगा। कलयुग में खजूर से लंबा तो दशहरे पर रावण बनाया जाता है, आग लगने पर फायर ब्रिगेड बहुमंजिला भवनों से प्रभावित परिवारों को सफलतापूर्वक बचा लेता है, लेकिन बेचारा खजूर मानो कोई पनौती हो।
इसी खजूर के फल को अमीरों के घरों में कितना सम्मान मिलता है। अंग्रेजी में इसे डेट date अथवा date palm कहते हैं। सूखने पर यह सूखा मेवा ही खारक कहलाता है। अगर यही खजूर गरीबों के मेवे बोर की तरह झाड़ियों में उगता तो बकरी के साथ साथ, हर आम और खास के लिए भी आसानी से उपलब्ध हो जाता। वैसे भी अमीरों के फल तो आसमान में ही उगते हैं।।
प्रकृति की गोद में हर प्राणी का वास है। यह वत्सला एक चींटी से लेकर हाथी तक का पूरा खयाल रखती है। बस्ती, जंगल, बर्फ, पहाड़ और रेगिस्तान में भी जीवन व्याप्त है। केवल मनुष्य को छोड़कर किसी प्राणी को प्रकृति से कोई शिकायत नहीं। भले ही दास मलूका अजगर और पंछी को निकम्मा साबित कर दें, कोई अजगर और पंछी इंसान की भांति मंदिर में घंटियाँ बजा, उस दाता से कभी कुछ नहीं मांगता।
यह मनुष्य ही है, जो बंदर से भी दो कदम आगे बढ़ बागों के फूल भी तोड़ता है और फल भी खाता है और फिर कुल्हाड़ी लेकर गुलशन भी उजाड़ देता है।
अपने विशाल महल के खिड़की दरवाजों के लिए वह कितने पंछियों को बेघर करता है, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है और खजूर को दोष देता है, बड़ा हुआ तो क्या हुआ।।
लेकिन वह इतना मूढ़ मति भी नहीं ! उसका स्वार्थ देखिए, जब डूबता है तो तिनके का सहारा लेना भी नहीं भूलता। और जब कोई तिनका भी नसीब नहीं होता, तो पता है, क्या कहता है ;
हम तो डूबेंगे सनम
तुमको भी ले डूबेंगे ….
स्वार्थ और खुदगर्जी के इस पुतले से बचाने के लिए ही प्रकृति कुछ वस्तुएं उसकी पहुंच से दूर रखती है। रेगिस्तान में ऊंट को पीने को पानी और उसकी भूख मिटाने इंसान नहीं जाता।
हाथी का पेट एक इंसान नहीं भर सकता लेकिन एक जानवर कई इंसानों का पेट पालता है।
सुबह सुबह, खजूर खाते हुए मुझे कोई डर नहीं, कि कहीं मैं भी आसमान से गिरकर खजूर में न अटक जाऊं। इसके पहले कि कोई दूसरा आ जाए, क्यों न कुछ और खजूर उदरस्थ कर लिए जाएं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈