श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “घड़ी, तिथि और तारीख “।)  

? अभी अभी ⇒ घड़ी, तिथि और तारीख ? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

एक घड़ी परमात्मा के पास है, जो वास्तविक समय बताती है, उस घड़ी में तारीख और तिथि सभी समा जाते हैं। उस घड़ी की टिक टिक हमारे दिल की धड़कन है, जो हमें हमेशा सुनाई देती है। एक साधारण घड़ी की तरह हमारा शरीर भी महज कलपुर्जों का एक घंटाघर है, जिसकी चाबी उस ऊपर वाले के पास है। यह शरीर रूपी घड़ी खराब भी होती है, इसकी मरम्मत भी होती है और इसे कई बार बदला भी जा चुका है।

एक संसारी घड़ी भी है जो इस जगत का समय बताती है। इस घड़ी में कैलेंडर भी है, जो समय के साथ दिन, तारीख और वर्ष भी बताता है। इसी घड़ी में एक स्टॉप वॉच भी है, जो समय को रोकने की भी ताकत रखती है, लेकिन सिर्फ घड़ी का समय! परमात्मा की घड़ी को कोई कभी रोक नहीं पाया। वहां कोई स्टॉप वॉच नहीं। समय कभी आगे पीछे नहीं। वह घड़ी अटल है, अविनाशी है, अनंत है।।

दुनिया गोल है! भौगोलिक दृष्टि से यहां कहीं दिन कहीं रात होते हैं। यहां ग्लोबल मीट तो होते हैं, लेकिन यहां कोई ग्लोबल टाइम नहीं। सबकी अपनी अपनी घड़ी, अपना अपना वक्त।कोई दो घंटे पीछे तो कोई आठ घंटे आगे। लेकिन वक्त की इतनी पुख्ता जानकारी, कि हजार साल का कैलेंडर छाप लो। खुद एक फर्लांग उड़ नहीं सकते, लेकिन आसमां के हर सितारे की खबर रखते हैं।

रोज तारीख बदलती है, तो कहीं तिथि बदलती है। ज्योतिषीय गणना के आधार पर पंचांग बनाए जाते हैं, कोरोना की खबर नहीं, और कब कौन सा चंद्र ग्रहण है वो और कौन सा सूर्य ग्रहण, खगोल शास्त्री आपको बता देंगे। आसमान का कौन सा तारा कब टूटेगा, इसकी भी जानकारी उनके पास है।।

आप अपनी जन्म तारीख और तिथि दोनों की जानकारी रखते होंगे। अधिक मासों की गड़बड़ी के कारण दोनों में कम ही मेल होता है। तिथि के अनुसार जन्मदिन मनाने के लिए आप स्वतंत्र हैं, लेकिन आप आधार कार्ड और पेन कार्ड में जन्म तारीख अंग्रेजी कैलेंडर वाली ही दे सकते हैं, तिथि वाली नहीं।

आप हर काम घड़ी से कर सकते हैं, बस ईश्वर की घड़ी की आपको कोई जानकारी नहीं। आपका समय बहुत कीमती है लेकिन कभी ऐसी घड़ी भी आती है, जब वक्त ठहर जाता है, दुनिया ठहर जाती है, लॉक डाउन का अनुभव है हमें।।

जॉनी वाकर का एक गीत है ;

बड़ा ही सी आई डी है,

वो नीली छतरी वाला

हर ताले की चाबी रखता

हर चाबी का ताला।

आपकी सांसों की घड़ी भी उसके ही पास है। अगर वह चाबी देना भूल जाए, तो आप सांस लेना भूल जाओ। हम अपने हाथ में कार और टीवी का रिमोट रख खुश हैं और अपना रिमोट उसे सौंप बैठे हैं। उसके ऑफ/ऑन से ही सारी चहल पहल है। फिर भी हमारा कर्तापन नहीं जाता।

और उधर हमारे कवि संतोष आनंद एक अलग ही राग अलाप रहे हैं ; ज़िन्दगी की न टूटे लड़ी, प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी। सही भी है! पल दो पल का साथ हमारा, पल दो पल के याराने हैं। साहिर तो यहां तक कह गए हैं कि आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू। जो भी है, बस यही एक पल। अब आगे क्या बोलूं जी। घड़ी घड़ी एक ही बात बोलना अच्छा नहीं लगता। अपना खयाल रखना। इक बरहमन ने कहा है, ये साल अच्छा है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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