श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “होना, और कुछ नहीं होना…।)

?अभी अभी # 230 ⇒ होना, और कुछ नहीं होना… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है।

सामना आज उनसे होना है।।

जब जब, जो जो होना होता है, तब तब सो सो होता है, बिंदु की मां ! क्या कुछ होने के लिए किसी का सामना होना जरूरी है।

जब कि हमने तो सुना है कि होता वही है, जो मंजूरे खुदा होता है और शुद्ध हिंदी में, ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता। यह तो वही हुआ कि पत्ता अगर किसी के डर के मारे हिल गया, तो उसमें भी डराने वाले की मर्जी शामिल हो गई।

जिसकी मर्जी होती है, उसका हमारे सामने रहना भी जरूरी नहीं।

हमने न तो डर को देखा और न ही उस रब को। बस महसूस किया और या तो काम हो गया, अथवा काम तमाम हो गया। कहते हैं, डर के आगे जीत है और उस यारब के आगे तो हार ही हार है। उनसे मिली नज़र, तो मेरे होश उड़ गए।।

होना हमारी नियति है और होना ही प्रकृति भी। अगर हम नहीं होते तो क्या होता और अगर यह दुनिया ही नहीं होती तो क्या होता, जैसे प्रश्न हमारे मन में इसलिए नहीं आते, क्योंकि हम हैं और हमारे कारण ही यह कायनात भी। हमारे नहीं होने का प्रश्न तब पैदा होता, जब हम नहीं होते। अगर हम नहीं होते, तो इस कायनात का भी प्रश्न पैदा नहीं होता। हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं। हम किसी से कम नहीं।

क्या कभी इस सृष्टि में ऐसा भी वक्त आया होगा, जब कुछ भी नहीं होगा। जब कुछ भी नहीं होगा, तो न चांद होगा, न सूरज होगा, और न ये आसमान होगा। तब तो फिर इस धरती का भी अस्तित्व नहीं रहा होगा, हमारी आपकी तो खैर बात ही छोड़िए।

दर्शन, ज्ञान विज्ञान और हमारी कई धार्मिक मान्यताएं आदम हव्वा, adam eve और मनु और श्रद्धा से हमारी उत्पत्ति बताते हैं तो इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के लिए तो हमारे ब्रह्मा जी ही काफी हैं। थ्री इन वन ब्रह्मा विष्णु और महेश, फिर क्या रह जाता शेष।।

होने को ही हम होनी भी कहते हैं। जो नहीं होना चाहिए, उसे हमने अनहोनी नाम दिया है। जो हो रहा है, जो अस्तित्व में है उसे हम मैनिफेस्टेशन, प्रकृति,

कायनात, मजहर अथवा व्यक्त मानते हैं। अव्यक्त, अशेष, ही अनादि, अनंत, अजन्मा, निराकार ओंकार स्वरूप है। एक महामानव ने इसका नाम ब्लैक होल दे दिया। कितनी आसान अभिव्यक्ति है शून्य, जिसमें सब कुछ समाया हुआ है।

कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फानी। निदा फाजली तो यहां तक कहते हैं ;

दुनिया जिसे कहते हैं

जादू का खिलौना है।

मिल जाए तो मिट्टी

खो जाए तो सोना है।।

हम भी तो यही चाहते हैं। जो हो, अच्छा ही हो। हम भी बस पाना ही पाना तो चाहते हैं, कौन यहां कुछ खोना चाहता है। हमारा होना ही हमारा अस्तित्व है, हम नहीं जानते, हमारे नहीं होने पर क्या होना जाना है।

हमारे जीवन में बहुत कुछ घटता है, चाहा, मनचाहा, अनचाहा। घटना, बढ़ना जीवन की आम घटना है। हमारी घटती उम्र को हम बढ़ती उम्र समझते हैं। बहुत कुछ हुआ है, अभी बहुत कुछ होना बाकी है। जहां अभी और अपेक्षा है, वहां उत्साह, उमंग और महत्वाकांक्षा है, जहां संतोष, तसल्ली और संतुष्टि है, वहां, बाकी भी इसी तरह, गुजर जाए तो अच्छा, ऐसी भावना है।

फिर भी एक अंदेशा है, आंतरिक संकेत है कि कुछ ना कुछ तो जरूर होना है, सामना आज उनसे होना है। यह आज कब आता है, बस उस कल की, उस पल की प्रतीक्षा है, सामना किससे होना है, यह हम नहीं बताएंगे।।

जब वह साक्षात सामने प्रकट हो जाएगा, आप जान जाएंगे, लेकिन फिर किसी को बताने लायक नहीं रह जाएंगे। अभी बहुत कुछ होना बाकी है;

हम इंतजार करेंगे,

तेरा कयामत तक।

खुदा करे, कि कयामत हो

और तू आए।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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