श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “घुसपैठ…“।)
अभी अभी # 231 ⇒ घुसपैठ… श्री प्रदीप शर्मा
पहले तो बिना इजाजत कहीं भी घुस जाना और फिर धूनी जमाकर बैठ जाना आखिर घुसपैठ नहीं तो और क्या है। यह तो वही हुआ, चोरी और सीना जोरी।
जितने सुरक्षित हम आज हैं, उतने पहले कभी नहीं थे। गए वो जमाने, जब हमसे पहले हमारे पलंग और बिस्तर पर खटमलों का राज था। अरे, उनकी दीवारों से तो क्या, खिड़की दरवाजों तक से मिलीभगत थी। इन खून चूसने वाले घुसपैठियों को रात रात भर जाग जागकर घासलेट की पिचकारी से नहलाना पड़ता था और कुछ को तो जीते जागते ही जल समाधि देनी पड़ती थी। आज अगर खाट नहीं, तो खटमल भी नहीं।।
आज के मच्छरों और मक्खियों को भी आप चाहें तो घुसपैठिया कह सकते हैं। लेकिन वास्तव में आज भी हमारे देश में मक्खी मच्छरों का ही साम्राज्य है। इन्हें भगाने के लिए पहले हमें गंदगी को भगाना पड़ता है, भारत को स्वच्छ ही नहीं रखना पड़ता, अपने घरों के दरवाजों और खिड़कियों में जाली भी लगवानी पड़ती है। फिर भी आप नाना पाटेकर को यह डायलॉग मारने से नहीं रोक सकते ;
एक मच्छर साला आदमी को हिजड़ा बना देता है।
कार के बंद शीशों में जब एक मक्खी अथवा मच्छर घुस जाता है, तो वह भी किसी घुसपैठिए से कम नहीं होता। एक अकेला सब पर भारी ! खिड़की खोलो, फिर भी बाहर जाने को तैयार नहीं। उसे कार से बेदखल करने के बाद सबके चेहरे पर विजयी मुस्कान आसानी से देखी जा सकती है।।
सीसीटीवी कैमरे, और अन्य महंगे सुरक्षा उपकरण, जिनमें वफादार कुत्ते भी शामिल हैं, चोर, डाकू, और बिन बुलाए मेहमान से तो आपकी सुरक्षा कर सकते हैं, लेकिन बिना इजाजत घुसी एक मक्खी से आपको नहीं बचा सकते। मच्छरदानी से mosquito bat तक की यात्रा इसकी गवाह है।
बिना मुंह लगाए, वह हमारे मुंह पर मंडराया करती है, प्रेयसी की तरह चिपकने की कोशिश करती है। ना जाने कहां कहां से मुंह काला करके आई होती है कलमुंही।
कभी कभी परिचित सज्जनों के साथ कुछ ऐसे अनचाहे, अनवांटेड व्यक्ति भी जीवन में प्रवेश कर जाते हैं, जो घुसपैठ में माहिर होते हैं। थोड़ी सी पहचान ही काफी होती है उन्हें, घुसपैठ करने के लिए। साहित्य, संगीत, घर परिवार, कथा सत्संग और राजनीति सभी क्षेत्रों में इनकी तगड़ी घुसपैठ होती है।।
हर शादी ब्याह, उठावना, पुस्तक मेला, परिचय सम्मेलन, में आपको इनके दर्शन हो जाएंगे। आप कितना भी मुंह फेरें, वे तपाक से आपसे मिलेंगे और आपके साथ वाले से हाथ मिला लेंगे। ये लोग परिचय के मोहताज नहीं होते। इन्हें सब जानते हैं।
थोड़ी बहुत घुसपैठ और मेल मिलाप भी जीवन में जरूरी है। लेकिन अगर किसी ने मक्खी की तरह चिपकने की कोशिश की तो उसे दूध में से मक्खी की तरह निकालकर फेंकना भी जरूरी है।
घुसपैठियों से सावधान।
मक्खी, मच्छरों, अब तुम्हारी खैर नहीं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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