श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उंगलियों का अंकगणित…“।)
अभी अभी # 239 ⇒ उंगलियों का अंकगणित… श्री प्रदीप शर्मा
मैं जब सुबह सोकर उठता हूं, तो अपने ही हाथों का दर्शन कर, दोनों हथेलियों को आपस में रगड़ता हूं, और अपने गर्म हाथों से अपने चेहरे को कोमल स्पर्श द्वारा, एक मां की तरह सहेजता हूं, दुलारता हूं, और ईश्वर का स्मरण करता हूं ;
कराग्रे वसते लक्ष्मी:
करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्द:
प्रभाते करदर्शनम्।।
ये हाथ अपनी दौलत है, ये हाथ अपनी किस्मत है।
हाथों की चंद लकीरों का
बस खेल है सब तकदीरों का।
जिसे हम हस्त कहते हैं, वही अंग्रेजी का palm है, और हस्तरेखा अथवा Palmistry एक विज्ञान भी है। हमारे जगजीतसिंह तो फरमाते हैं ;
रेखाओं का खेल है मुकद्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो।
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो।।
रेखा को ही लकीर भी कहते हैं। हम आज हाथों की नहीं, उंगलियों की लकीरों की बात करेंगे। अगर हमारी पांच उंगलियां नहीं होती, तो क्या हमारा हाथ पंजा कहलाता, क्या हम मुट्ठी बांध और खोल पाते। हमारे हाथ में पांच उंगलियां हैं, जिनमें अंगूठा भी शामिल है।
ज्योतिष का क्या है, हाथों की चंद लकीरें पढ़, शुभ अशुभ के तालमेल के लिए सारे नग उंगलियों की अंगूठी में ही तो आते हैं।
उधर अंगूठे का ठाठ देखो, और thumb impression देखो। नृत्य की मुद्रा, और योग में भी मुद्रा का महत्व उंगलियों की उपयोगिता को सिद्ध करता ही है, इन्हीं उंगलियों पर लोग नाचते और नचाते भी हैं।।
क्या कभी आपने आपकी उंगली पर गौर किया है। हमारी उंगलियों का भी अजीब ही गणित है। हर उंगली में तीन आड़ी लकीरें हैं। यानी ये लकीरें एक उंगली को तीन बराबर हिस्सों में बांटती है। आप चाहें तो इन्हें खाने भी कह सकते हैं। लेकिन मेरे दाहिने हाथ का अंगूठा यहां भी सबसे अलग है, उसमें तीन नहीं चार खाने हैं।
आपने कभी उंगलियों पर हिसाब किया है ! अवश्य किया होगा। लोग तो छुट्टियाँ भी उंगलियों पर ही गिन लेते हैं। सप्ताह में सात दिन हमने उंगलियों पर ही याद किए थे और दस तक की गिनती भी।
बहुत काम आती हैं ये उंगलियां जब कागज कलम नहीं होता।।
जब आज की तरह मोबाइल और कैलकुलेटर नहीं था, तब सब्जी का हिसाब उंगलियों पर ही किया जाता था। दूध के हिसाब के लिए तो कैलेंडर जिंदाबाद।
इन उंगलियों का उपयोग मंत्र जपने के लिए भी किया जा सकता है। आपके एक हाथ की उंगलियों में देखा जाए तो पंद्रह मनके हैं, यानी दो हाथ में तीस। याद है बच्चों को एक से सौ तक की गिनती भी इसी तरह सिखाई जाती थी। रंग बिरंगे प्लास्टिक के मोती एक स्लेटरूपी तार के बोर्ड में पिरो दिए जाते थे।
क्या क्या याद नहीं किया जा सकता इन उंगलियों पर, मत पूछिए। अभी कितने बजे हैं, रात के सिर्फ दो। यानी सुबह होने में, और उंगलियों पर गिनती शुरू, तीन, चार, पांच, छः, यानी बाप रे, चार घंटे कैसे कटेंगे। फिर कोशिश करते हैं, शायद आंख लग जाए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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