श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अपर, मिडिल, लोअर बर्थ।)

?अभी अभी # 252 ⇒ अपर, मिडिल, लोअर बर्थ… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, तिलक कह तो गए हैं, लेकिन क्या हमारा हमारे अपने जन्म पर भी अधिकार है। यह तो आपके संचित पुण्यों का फल है, जैसे संचित कर्म, वैसा बर्थ, यानी जन्म। अगर हम पैदा ही नहीं हुए होते, तो हमारा कैसा अधिकार और कैसा संचित पुण्य फल।

चलिए, अब तो पैदा हो भी गए, तो बर्थ कौन सी मिली ? यहां भी वही घिसा पिटा जवाब, कोई सुनवाई नहीं, कोई विकल्प नहीं।

जैसी बर्थ मिली, उसमें ही एडजस्ट कर लो। क्या किसी से बर्थ एक्सचेंज कर सकते हैं, बिल्कुल नहीं ! यह कोई रेलवे की बर्थ नहीं है, अगर लोअर है तो लोअर ही रहेगी और अगर मिडिल है तो मिडिल। अपर वाली तो लागों को बड़ी मुश्किल से मिलती है। बर्थ मिल गई नसीब से, ईश्वर का धन्यवाद करो, और जीवन यात्रा शुरू करो।।

ठीक है, दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा। एक बार येन केन प्रकारेण पैदा हो गए, बर्थ हासिल कर ली, अब हमारा पुरुषार्थ और जुगाड़ अपना काम करेगा। जोड़ तोड़ में हम किसी से कम नहीं।

क्या आपने सुना नहीं ! हिम्मते मर्दा, तो मददे खुदा। एक बाद जिंदगी की गाड़ी में बैठ गए, उसके बाद हम अपनी मर्जी अनुसार, कभी यात्रियों से मीठा बोलकर, अनुनय विनय और बनावटी आंसू के सहारे सीट हासिल कर सकते हैं तो कभी कभी टीसी से सेटिंग और मुट्ठी गर्म करके ही अपना उल्लू सीधा कर ही लेते हैं।।

हम यह भी जानते हैं कि यात्रा पूरी होते ही हमारी भी बर्थ खाली होनी है, लेकिन जब तक हम जिंदा हैं, अपनी बर्थ पर किसी को नहीं बैठने देंगे।

यह भी सच है कि जीवन चलने का नाम है। एक यात्रा पूरी होते ही इंसान फिर किसी दूसरे सफर पर निकल पड़ता है।

एक ही जीवन में कितनी यात्राएं कर ली हमने। कभी ट्रेन में अपर बर्थ मिली तो कभी लोअर। जब तक उम्र थी, सब पुरुषार्थ कर लिया, और एडजस्ट भी कर लिया।।

उम्र के इस पड़ाव में अच्छा भला इंसान भी शैलेंद्र बन बैठता है। जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां। जब उम्र ही काम नहीं कर रही तो कैसा सफर और कैसी बर्थ। सब अपर और मिडिल क्लास की हेकड़ी निकल जाती है। भैया, लोअर बर्थ हो, तो ही अब तो सफर करेंगे।

कायदे कानून छोड़ दो। जितना पैसा लगे, लगने दो, अगर लोअर बर्थ मिल गई तो कम से कम सफर तो आसानी से कट जाएगा। अगले जन्म में फिर से भगवान से अपर बर्थ मांग लेंगे। बहुत गौ सेवा की है, दान पुण्य किए हैं इस जनम में। बस लोअर बर्थ कन्फर्म होते ही ;

सवेरे वाली गाड़ी से

चले जाएंगे।

कुछ ले के जाएंगे

कुछ दे के जाएंगे।।

मेहमान कब रुके हैं

कैसे रोके जाएंगे ..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  3

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