श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “छुप गया कोई रे।)

?अभी अभी # 273 ⇒ छुप गया कोई रे… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।

निकलकर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान..।

– ‘पंत ‘

प्रेम और भक्ति दोनों में जितना महत्व संयोग का है, उससे थोड़ा अधिक ही महत्व विरह और वियोग का है। हैं सबसे मधुर वो गीत, जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं।

सुर तो खैर संगीत और साधना का विषय है, लेकिन दर्द का सुर तो ईश्वर ने हर प्राणी को दिया है। आह को चाहिए, एक उम्र असर होने तक। कब किस वक्त, किस मूड में, कौन सा गीत, अनायास ही आपके कानों में पड़े, और आप उसे गुनगुनाने लगें, उसमें इतने डूब जाएं, कि वक्त ठहर जाए।।

कई बार सुना होगा फिल्म चंपाकली(1957) के इस अमर गीत को आपने भी। अहसास तो हम सबको होता है, लेकिन जब हमारे दर्द की अभिव्यक्ति कुछ इस तरह होती है, तो शब्द हृदय के अंदर तक उतर जाते हैं ;

छुप गया कोई रे, दूर से पुकार के

दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के ..

हमारी यादों की परछाइयों में भी बहुत कुछ ऐसा है, जो इन शब्दों को सुनते ही अनायास ही प्रकट हो जाता है।

आज हैं सूनी सूनी, दिल की ये गलियाँ

बन गईं काँटे मेरी, खुशियों की कलियाँ

प्यार भी खोया मैने, सब कुछ हार के

दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के …

खोना और पाना, कांटों और खुशियों के बीच ही तो हम अपना जीवन गुजारते चले आ रहे हैं। प्यार अगर जीवन का सबसे खूबसूरत उपहार है, तो प्यार में हारने का दुख भी उतना ही पीड़ादायक है।

क्या पीड़ा में भी सुख होता है। इस दर्द भरे गीत में ऐसा क्या है, जो एक सुधी श्रोता को बांधे रखता है।

शायद राजेंद्र कृष्ण की कलम है, अथवा हेमंत कुमार का मधुर संगीत। लेकिन लगता है, लता की आवाज का ही यह कमाल है। जब लता ने यह गीत गाया होगा, तो अवश्य ही डूबकर गाया होगा। अगला अंतरा देखिए ;

अँखियों से नींद गई, मनवा से चैन रे

छुप छुप रोए मेरे, खोए खोए नैन रे

हाय यही तो मेरे, दिन थे सिंगार के

दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के …

जो शब्द और सुर आपको पूरी तरह झंझोड़ दे, तो अवश्य ही वह राग झिंझोटी होगा। मैं नहीं जानता, इस गीत में ऐसा क्या है, जो मैं इसे आप तक पहुंचाने के लिए बाध्य हो गया।

अपना नहीं, इस जहां का नहीं, दो जहां का दर्द शामिल है इस गीत में। जब यह गीत मैं सुनता हूं तो कई ऐसे चेहरे मेरे सामने आ जाते हैं, जो इस दौर से गुजर चुके हैं। और उनमें कुछ चेहरे तो ऐसे हैं, जो यह दुनिया ही छोड़ चुके हैं। उन सबके लिए और आपके लिए भी समर्पित है यह गीत। बस, सुनिए, गुनगुनाइए, डूब जाइए, और मन करे तो दो आंसू भी बहाइए क्योंकि ;

छुप गया कोई रे

दूर से पुकार के।

दर्द अनोखे हा

दे गया प्यार के।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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