श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “वसंत के बहाने।)

?अभी अभी # 284 ⇒ वसंत के बहाने… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सबसे पहले बचपन की एक कविता, जो आज भी हम सबकी जबान पर सरस्वती की तरह मौजूद है ;

आया वसंत, आया वसंत।

खिल गए फूल, लद गई डाल।

भौंरों ने गुनगुनाना शुरू किया

पत्ते दे रहे ताल।।

तब हम कहां जानते थे, कौन निराला है, कौन पंत है और कौन प्रसाद है।

कितनी सरल भाषा है, फिर भी लदने और ताल देने की अभिव्यक्ति कितनी सहज और सुंदर है।

हम तो अपनी उम्र को भी वसंत से ही गिनते हैं, कितने वसंत पूरे हुए।

जिस भी कन्या अथवा बालक का जन्म वसंत पंचमी को हुआ, उसका नामकरण तत्काल बसंत अथवा बसंती हो जाता था। वसंत में जब थोड़ा रंग मिल जाता है, तो वह रंग बसंती हो जाता है। रंग बसंती आ गया, मस्ताना मौसम छा गया।।

अंगड़ाई शब्द में ही मस्ती है। यही वह समय है, जब मौसम भी अंगड़ाई लेने लगता है। अंगड़ाई का कोई मुहूर्त भले ही ना होता हो, लेकिन समय जरूर होता है। सबसे पहले इसका असर सूर्य नारायण पर पड़ता है। ठंड में ठिठुरते हुए, सात बजे के बाद खिड़की खोलने वाले आदित्य नारायण इस मौसम में जल्द ही आंगन में पसर जाते हैं। ओस से ढंकी पत्तों और फूलों की बूंदें, गायब होनी नजर आने लगती है। सूरज की अंगड़ाई के बहुत पहले ही पक्षी अपना बसेरा छोड़ चुके होते हैं। वे शायद दोपहर की थकान के बाद अगड़ाई लेते हों क्योंकि सुबह तो उन्हें सांस लेने की भी फुर्सत नहीं मिलती।

मकर सक्रांति से यह मौसम की क्रांति शुरू होती है। पहले तिल गुड़ खाकर हमने ठंड भगाई और अब केसरिया चावल खा रहे हैं। हो सकता है, आगे गुड़ी पाड़वा तक हम पूरण पोळी से भी आगे निकल ठंडे श्रीखंड पर अटक जाएं। मस्ती में सराबोर यह अंगड़ाई जब होली के रंग में भीगेगी, तब केवल बनारस वाले पान से कहां काम चलने वाला है।।

वसंत की इस मस्ती में सरस्वती की साधना का समय भी बड़ा अनुकूल है। आज के इस शुभ मुहूर्त पर क्यों न देवी सरस्वती से ही वर मांगा जाए ;

वर दे, वर दे,

वीणा वादिनी वर दे। ‌

प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव

भारत में भर दे।

वीणा वादिनी वर दे ॥

काट अंध उर के बंधन स्तर

बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर

कलुष भेद तम हर प्रकाश भर

जगमग जग कर दे।

वर दे, वीणावादिनी वर दे ॥

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

 

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments