श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हालचाल ठीक ठाक हैं।)

?अभी अभी # 294 हालचाल ठीक ठाक हैं? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जब तक दफ्तर में काम करते रहे, साहब की गुड मॉर्निंग का जवाब, गुड मॉर्निंग से देते रहे, जिसने राम राम किया, उसको राम राम किया और जिसने जय श्री कृष्ण किया, उनसे जय श्री कृष्ण भी किया। इक्के दुक्के जय जिनेन्द्र वाले भी होते थे। आप इसे सामान्य अभिवादन का एक सर्वमान्य तरीका भी कह सकते हैं।

बहुत कम ऐसा होता है कि अभिवादन का जवाब नहीं दिया जाए। कहीं अभिवादन की पहल होती है और कहीं उसका जवाब दिया जाता है। जहां भी साधारण परिचय है, वहां मिलने पर इसे आप एक सहज अभिव्यक्ति कह सकते हैं। औपचारिक होते हुए भी आप इसे व्यावहारिक जगत का एक अभिन्न अंग कह सकते हैं।।

मुझे नमस्ते अभिवादन में उतनी ही सहज लगी, जितनी लोगों को गुड मॉर्निंग, राम राम, जय श्री कृष्ण अथवा जय श्री राम लगती है। लेकिन राम राम का जवाब राम राम से देना और जय श्री कृष्ण का जवाब जय श्री कृष्ण से देना ही ज्यादा उचित होता है।

तकिया कलाम की तरह सबके अपने अपने अभिवादन होते हैं। कहीं जय माता दी तो कहीं जय बजरंग बली। जय सियाराम से चलकर आज यह कहीं जय श्री राम, तो कहीं जय साईं राम तक पहुंच गई है। कहीं कहीं तो अभी भी भोले, गुरु और उस्ताद से ही काम चल रहा है।।

कुछ लोगों का तो यह भी आग्रह रहता है कि फोन पर हेलो की जगह भगवान अथवा अपने इष्ट का नाम ही लिया जाए। आजकल व्हाट्सएप और मैसेंजर पर गुड मॉर्निंग के रंग बिरंगे, सूर्योदय, नदी पहाड़ और फूल पत्तियों से सुजज्जित हिंदी अंग्रेजी में फॉरवर्डेड मैसेज आते हैं, जिन्हें गमले की तरह, सिर्फ इधर से उठाकर उधर रख दिया जाता है। कुछ लोगों को यह औपचारिकता भी पसंद नहीं आती।

व्यावसायिक की तुलना में, एक उम्र के बाद, व्यक्तिगत फोन वैसे भी कम ही आते हैं। जहां बाल बच्चे और परिजन परदेस में होते हैं, वहां नियमित समय बंधा रहता है, वीडियो कॉल पर ही बात होती है। मन फिर भी नहीं भरता। लेकिन दुनिया में ऐसा कहां, सबका नसीब है।।

कहीं कहीं परिस्थितिवश स्थिति एकांगी हो जाती है। यानी मिलने जुलने वाले लोगों का आना जाना कम हो जाता है और फोन कॉल्स भी इक्के दुक्के ही आते हैं। सामान्य तरीके से हालचाल पूछे जाते हैं, जिसका जवाब भी ठीक ठाक ही देना पड़ता है। आप कैसे हैं, हां ठीक है। सामने वाले को तसल्ली हो जाती है। जब कि दिल का हाल तो अपनों को ही सुनाया जाता है।

ज्ञानपीठ वाले गुलजार के ही शब्द हैं, जो ऐसे लोगों का दर्द बयां कर जाते हैं ;

कोई होता जिसको अपना

हम अपना कह लेते यारों।

पास नहीं तो दूर ही होता

लेकिन कोई मेरा अपना।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments