श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “गिले शिकवे और प्यार ।)

?अभी अभी # 297 ⇒ गिले शिकवे और प्यार? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कभी कभी, अभी अभी, फिल्मी हो जाता है। वैसे भी सुबह का वक्त लेखन, पठन पाठन, ध्यान धारणा और गीत संगीत का ही होता है। यूं भी दिन की शुरुआत इससे अच्छी तरह हो भी नहीं सकती अगर इनमें चाय और अखबार को और शामिल कर लिया जाए।

मैं पुस्तक प्रेमी के अलावा रेडियो प्रेमी अर्थात् संगीत प्रेमी भी हूं, मतलब किसी ना किसी तरह मेरा भी प्रेम से नाता तो है ही। जो रेडियो से करे प्यार, वो फिल्म संगीत से कैसे करे इंकार। जो कलाकार संगीत की गायकी विधा से जुड़े होते हैं, वे तानसेन कहलाते हैं, लेकिन मेरे जैसे रेडियो श्रोता को आप चाहें तो कानसेन कह सकते हैं। मेरे कान अक्सर रेडियो से ही सटे रहते हैं।।

सुबह सुबह कभी रेडियो सीलोन सुनने की आदत अब विविध भारती पर आकर ठहर गई है। मैं आज भी वही स्तरीय गीत पसंद करता हूं, जो कभी रेडियो सीलोन पर करता है, और विविध भारती भी मुझे कभी निराश नहीं करता।

अभी कल ही की बात है, सुबह ७.३० बजे, यानी भूले बिसरे गीतों के पश्चात् विविध भारती से कुछ युगल गीत प्रसारित हुए, जिसमें से एक गीत का जिक्र मैं यहां करने जा रहा हूं। जब हम कोई गीत बार बार सुनते हैं, तो उसके गायक/गायिका के साथ साथ ही गीतकार और संगीतकार के बारे में भी हमें पूरी जानकारी हो जाती है। जो संगीत रसिक होते हैं वे ऐसे खवैये होते हैं, जो स्वाद के साथ साथ परोसे व्यंजन के बारे में भी पूरी जानकारी रखते हैं।।

रफी और लता का फिल्म सच्चा झूठा का एक युगल गीत चल रहा था, जिसे इंदीवर ने लिखा और कल्याणजी आनंद जी ने संगीतबद्ध किया था। यूं ही तुम मुझसे बात करती हो, या कोई प्यार का इरादा है। बड़ा प्यारा गीत है, मन करता है, बस सुनते ही रहो।

इस गीत को सुनते सुनते ही एक और गीत जेहन में गूंजने लगा। इस गीत और उस गीत की धुन और बोल आपस में टकराने लगे, लेकिन गीत इतनी जल्दी याद नहीं आया। बड़ी मशक्कत हो जाती है याददाश्त की और तसल्ली तब ही मिलती है, जब वह गीत याद आ ही जाता है।

और वह गीत निकला फिल्म रखवाला का, जिसे राजेंद्र कृष्ण ने लिखा और कल्याण जी आनंद जी ने ही संगीतबद्ध किया। इस गीत को भी रफी साहब ने ही आशा जी के साथ गाया था। बोल थे ;

रहने दो,

रहने दो गिले शिकवे

छोड़ी भी तकरार की बातें

जब तक फुरसत दे ये जमाना

क्यूं ना करें हम प्यार की बातें।।

दोनों ही गीतों में गिले, शिकवे, प्यार और तकरार है। मेरे हिसाब से गीत सुनने की चीज है। हमने तो अक्सर सभी गीत रेडियो पर ही सुने हैं और क्रिकेट की भी रनिंग कमेंट्री भी रेडियो पर ही सुनी है। तब कहां घर घर टीवी था।

कल्पना कीजिए, क्रिकेट मैच की ही तरह रफी साहब और लता जी के बीच शब्दों का मैच चल रहा है। लता जी के हाथ में बैट है और रफी साहब के हाथ में बॉल। फिल्म सच्चा झूठा का गीत शुरू होता है। कल्याण जी आनंद जी का संगीत चल रहा है, और रफी साहब शब्दों की डिलीवरी के पहले छोटा सा रन अप ले रहे हैं। उनकी शब्दों की स्पिन का जादू देखिए, और शब्दों की डिलीवरी देखिए ;

यूं ही तुम मुझसे बात करती हो ….

या कोई प्यार का इरादा है ..

और लता जी बड़े आराम से शब्दों की बॉल को पैड कर देती हैं ;

अदाएं दिल की जानता ही नहीं

मेरा हमदम भी कितना सादा है।।

बस इस तरह आप पूरा गीत सुनते जाइए और रफी साहब की शब्दों की स्पिन डिलीवरी और लता जी की डिफेंसिव बैटिंग का आनंद लीजिए।

फिल्म रखवाला में भी शब्दों की स्पिन के जादूगर रफी साहब ही हैं, लेकिन सामने इस बार आशा जी बैटिंग कर रही हैं ;

रहने दो और कहने दो

में आशा जी स्पिन को डिफेंड नहीं करती, कई बार बॉल बाउंड्री पार भी निकल जाती है।

दोनों गीतों को सुनिए और रफी साहब की शब्दों की स्पिन और लता और आशा के गले का कमाल सुनकर लीजिए। क्योंकि परदे के पीछे के असली कलाकार तो ये अमर गायक और दोनों अमर गायिकाएं ही हैं।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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