श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “तलत की लत…“।)
अभी अभी # 298 ⇒ तलत की लत… श्री प्रदीप शर्मा
आदत तो खैर अच्छी बुरी हो सकती है लेकिन किसी चीज की लत अच्छी नहीं।
जुआ, शराब, गुटका और सिगरेट, बहुत बुरी है इनकी लत, लेकिन अगर किसी दीवाने को लग जाए तलत की लत, तो वह क्या करे। एक ओर बदनाम लत और दूसरी ओर मशहूर तलत ;
क्या करूं मैं क्या करूं
ऐ गमे दिल क्या करूं।
तलत एक ऐसा गायक है, जो दिल से गाता है, और दिल भी किसका, एक वतनपरस्त गरीब का ;
मैं गरीबों का दिल हूं
वतन की जुबां।
उसे जिंदगी की तलाश है ;
ऐ मेरी जिंदगी तुझे ढूंढूं कहां
न तो मिल के गए
न ही छोड़ा निशान।
पसंद अपनी अपनी, प्यार अपना अपना। दीवानों का क्या, जो सहगल के दीवाने थे, उनके गले कोई दूसरा गायक उतरता ही नहीं था। अपना अपना नशा है भाई, अपना अपना ब्रांड। सबको झूमने की छूट है, क्योंकि यह संगीत की दुनिया है और गायकी यहां का इल्म है।।
तलत का मुसाफिर अपनी ही धुन में रहता है ;
चले जा रहे हैं किनारे किनारे, मोहब्बत के मारे।
उसकी मजबूरी तो देखिए बेचारा ;
तस्वीर बनाता हूं,
तस्वीर नहीं बनती।
एक ख्वाब सा देखा है
ताबीर नहीं बनती।
कितनी शिकायत है उसे जिंदगी देने वाले से ;
जिंदगी देने वाले सुन
तेरी दुनिया से दिल भर गया
मैं यहां जीते जी मर गया।
एक सच्चे कलाकार की भी यही त्रासदी होती है। केवल जिसे कला की पहचान है, जो तलत का कद्रदान है, वही तलत के दर्द को समझ सकता है;
शामे गम की कसम
आज गमगीन हैं हम
आ भी जा, आ भी जा
आज मेरे सनम।
आप इसे भले ही फुटपाथ की शायरी कहें, लेकिन हर कलाकार की जिंदगी फुटपाथ से ही शुरू होती है। उसकी आवाज फुटपाथ और हर गरीब के झोपड़े तक में गूंजती है। तलत ने कभी महलों के ख्वाब देखे ही नहीं।
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया
ढूंढ लें, चल कोई घर नया
लेकिन एक आम इंसान की तरह वह भी जानता है ;
जाएं तो जाएं कहां
समझेगा कौन यहां
दिल की जुबां …
अगर आपको भी गलती से तलत की लत लग गई है, तो इसे छोड़िए मत। देखिए वे क्या कहते हैं ;
हैं सबसे मधुर वो गीत
जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं।
जब हद से गुजर जाती है खुशी
आंसू भी छलकते आते हैं।।
उन्हें जब रफी साहब का साथ मिला तो वे भी आखिर गा ही उठे ;
गम की अंधेरी रात में
दिल को न बेकरार कर
सुबह जरूर आएगी
सुबह का इंतजार कर।
और देखिए ;
गया अंधेरा, हुआ उजाला
चमका चमका, सुबह का तारा।।
जो शौकीन लोग जुबां केसरी से दो कदम आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके कानों के लिए पेशे खिदमत है, तलत की जुबां मखमली। लत हो तो तलत की।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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