श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हालचाल ठीक ठाक हैं।)

?अभी अभी # 347 ⇒ साहित्य के ब्रांड – एंबेसडर? श्री प्रदीप शर्मा  ?

रामायण काल में राजा के जो दूत होते थे, उन्हें भी राजदूत ही कहते थे। अपने स्वामी का जो संदेश लेकर जाए, वह दूत ! पूरे दरबार में दूत का सम्मान किया जाता है। और अगर दूत अंगद जैसा निकल जाए तो उसका पांव ही बहुत भारी पड़ जाता है।

अगर राजदूत पूरे देश के दूत बनकर विदेश जाते हैं, तो प्रचार और विज्ञापन की दुनिया में ब्रांड एंबेसडर यह दायित्व पूरा करते हैं। ब्रांड एम्बेसडर की एक छवि होती है जो लोगों को आकर्षित करती है। उसका उस विषय की जानकारी रखना कतई ज़रूरी नहीं। एक छोरा गंगा किनारे वाला, जब आपसे कहता है, कि कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात में, तो आप गंगा को छोड़ साबरमती की राह पकड़ लेते हैं। ।

साहित्य एक ऐसा ब्रांड है, जहां सभी एंबेसडर है। जब कोई लेखक कोई रचना लिखता है, तो कोई अख़बार अथवा पत्रिका उसकी ब्रांड अम्बेसडर बन जाती है। कोई प्रकाशक जब किसी लेखक की कृति को प्रकाशित करता है तो वह उस लेखक का ब्रांड एम्बेसडर बन जाता है। पुस्तक का प्रचार प्रसार उसकी जिम्मेदारी हो जाती है।

कभी कभी कोई आलोचक अथवा समीक्षक भी स्वयं को साहित्य का ब्रांड एम्बेसडर समझ बैठता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ रामविलास शर्मा और नामवर सिंह क्या साहित्य के ब्रांड एंबेसडर नहीं ! लेखक किस ब्रांड का है, यह भी आजकल आलोचक ही तय करता है।

अगर कोई नया कवि स्थापित कवियों के लिए खतरे की घंटी है तो उसे बजाने में ही समझदारी है। उस पर रीतिकालीन अथवा अश्लील होने का भी आरोप लगाया जा सकता है। फिर वह ब्रांड बाज़ार में ज़्यादा नहीं चल सकता।।

साहित्य की ब्रांड एम्बेसडर कभी पुस्तक प्रदर्शनी होती थी, जो समय के साथ पुस्तक मेले और बुक फेस्टिवल में तब्दील हो गई।

हर प्रकाशक की अपनी स्टॉल होती है, जहां लेखक खुद ब्रांड एंबेसडर बन अपनी बेची जाने वाली पुस्तक पर ऑटोग्राफ देता रहता है। बिल्कुल चना ज़ोर गरम जैसा माहौल बन जाता है।

हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए जो संस्थाएं बनीं, क्या उनको आप ब्रांड एंबेसडर नहीं कहेंगे ! नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की स्थापना की सन् 1893 में और श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर की स्थापना सन् 1910 में हुई। उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ और बिहार की बिहार राष्ट्रभाषा परिषद जैसी कई साहित्यिक संस्थाएं देश विदेश में ब्रांड एम्बेसडर की तरह हिंदी की ‌सेवा कर रही है। साहित्य अकादमी का गठन सन 1954 में किया गया। तब तक दिल्ली में भारतीय ज्ञानपीठ की सन 1944 में स्थापना भी हो चुकी थी। ये दोनों ही संस्थाएं साहित्य की स्थापित ब्रांड एम्बेसडर हैं। आप चाहें तो इन्हें आई एस आई मार्का ब्रांड एम्बेसडर कह सकते हैं। ।

साहित्य का सच्चा ब्रांड एम्बेसडर एक पाठक होता है जो न केवल किसी कृति का सच्चा प्रचारक होता है, बल्कि पोषक भी होता है। पाठक को साहित्यिक पुस्तकें उपलब्ध करवाने वाले पुस्तक विक्रेता और शहर शहर, नगर नगर में फैले सार्वजनिक वाचनालय को हम कैसे भूल सकते हैं।

साहित्य एक समग्र विषय है। जितने प्रदेश उतनी भाषाएं। जितने देश उनके उतने ही साहित्यकार। पुस्तकें ही पुस्तकें। आप भी जब लेखक की रचना खरीदकर पढ़ते हो, तो आप भी एक ब्रांड एम्बेसडर बन जाते हो। किसी पुस्तक की तारीफ का भी वही महत्व होता है जो एक ब्रांड एम्बेसडर का होता है। ज्ञान की ज्योत से ज्योत जलाना ही एक ब्रांड एम्बेसडर का काम है। आप भी साहित्य के ब्रांड एंबेसडर बनिए, अच्छा साहित्य पढ़िए, अच्छे साहित्य का प्रचार करिए।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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