श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “साक्षर, निरक्षर और पढ़े लिखे …“।)
अभी अभी # 356 ⇒ साक्षर, निरक्षर और पढ़े लिखे … श्री प्रदीप शर्मा
जिस तरह पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती, हमारे १४० करोड़ की आबादी के देश में लोग अनपढ़ भी हो सकते हैं, और शिक्षित भी।
जो निरक्षर है, उसे आप काला अक्षर भी कह सकते हैं, जो साक्षर है, हो सकता है, वह सिर्फ ढाई अक्षर ही पढ़ा हो, लेकिन हमें सबसे अधिक उम्मीद देश के पढ़े लिखे लोगों से होती है।
फिलहाल हमारी साक्षरता दर ७७ प्रतिशत है, अगर इसे अस्सी भी मान लिया जाए तो बीस प्रतिशत आबादी अभी भी अंगूठा छाप है। निरक्षरता के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अस्सी प्रतिशत साक्षर आबादी में ही सभी शिक्षित भी शामिल हैं। जनगणना (census) के वक्त ही यह पता चल सकता है कि देश में कितने शिक्षित हैं और कितने साक्षर। हर परिवार में कौन कितना पढ़ा लिखा है, यह जानकारी भी जनगणना के वक्त ही एकत्रित कर ली जाती है।।
फिल्म, टीवी, मोबाइल और अखबारों ने लोगों को पढ़ना, लिखना, बोलना सिखाया है, व्यावहारिक कुशलता का और काम धंधे का वैसे तो पढ़ने लिखने से कोई संबंध नहीं है, फिर भी नौकरियों के लिए हर आदमी को पढ़ना लिखना और डिग्री हासिल करना ही पड़ता है।
हमारे देश में शिक्षा से अधिक कार्य कुशलता पर जोर दिया गया। घर की महिलाएं हों, अथवा कामकाजी पुरुष, लड़कियां गृह कार्य में कुशल होती थीं और लड़के पिताजी के काम धंधे में हाथ बंटाते थे। वैसे भी कभी हमारा देश कृषि प्रधान देश था, और गांवों में ही बसता था।।
आजादी के बाद से ही हमें अपनी वास्तविक स्थिति का पता चल पाया। आज हम चलते चलते यहां पहुंचे हैं। उपयोगिता के आधार अगर देखा जाए, तो शिक्षा की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता।
एक साधारण पुराना पांचवीं अथवा आठवीं पास व्यक्ति आज भी आराम से अपना काम धंधा कुशलता से चला लेता है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या और बेरोजगारी उसे अधिक अधिक शिक्षित होने के लिए बाध्य कर देती है।
सन् ६० और ७० के दशक में, जब हमारी पीढ़ी कॉलेज में पढ़ रही थी, तब देश में बाबुओं की फौज (Clerk generation) खड़ी हो रही थी। कोई बी.ए., बी.एससी. करके बैंक और एलआइसी ज्वाइन कर रहा था, तो कोई शासकीय सेवक अथवा शिक्षक। लेकिन रिटायर होते होते वे पदोन्नत भी होते गए, और आज अच्छी पेंशन पा रहे हैं। यही नहीं, उन्होंने अपनी मेहनत और पुरुषार्थ से अपनी पीढ़ी को इतना शिक्षित और सक्षम बनाया कि आज वह दुनिया के हर कोने में अपने माता पिता का नाम रोशन कर रही है।।
लेकिन वही बात, पांचों उंगलियां कहां बराबर होती हैं। शहर और महानगरों की चकाचौंध हमेशा सिक्के का एक ही पहलू ही दर्शाती है। एक और तस्वीर भी है देश की बड़ी आबादी की, जिसकी हालत बहुत चिंताजनक है। अशिक्षा, अंधविश्वास, बेरोजगारी, और पिछड़ेपन के शिकार, इन लोगों की बदहाली तक केवल चुनाव प्रचार ही पहुंच पाता है।
इनके ही बहुमत से तो सरकारें चुनी जाती हैं।
एक व्यापारी अथवा दुकानदार जो कम लिखा पढ़ा है, अपने यहां अधिक पढ़े लिखे शिक्षित कर्मचारी को सेवा में रख उसकी योग्यता का दोहन कर सकता है। देश की उत्पादकता वृद्धि में हर मजदूर, किसान, व्यापारी और शिक्षित वर्ग का अपना अपना योगदान है। क्या फर्क पड़ता है, कौन कितना पढ़ा लिखा है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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