श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “खून पसीना…“।)
अभी अभी # 369 ⇒ खून पसीना… श्री प्रदीप शर्मा
हमारे शरीर में खून भी है, और पानी भी। जो रगों में दौड़ता रहता है, वह खून कहलाता है। जरा सी चोट लगी, बहने लगता है। थोड़ी मेहनत की, पसीना बहने लगता है। जिनकी आंखें समंदर हैं, वहां समंदर जितने आंसू भी हैं। जितना पानी इस पृथ्वी पर है, उसी के अनुपात से, यानी हमारे इस शरीर में सत्तर प्रतिशत पानी है। हमारी इस पृथ्वी पर भी सत्तर प्रतिशत जल ही तो है।
स्वस्थ और तंदुरुस्त इंसान का खून बढ़ता है। जो हमेशा क्रोध करता है, जलता रहता है, क्या उसका खून नहीं जलता। खून पसीना बहाकर ही इंसान अपनी गृहस्थी चलाता है। खून की कमी और पानी की कमी से इंसान कमजोर हो जाता है। उधर होमोग्लोबिन घटा, इधर खून की बॉटल चढ़ी। शरीर के पानी की मात्रा घटने पर भी तो, सलाइन ही चढ़ाई जाती है।।
इन आंखों में कभी गुस्से में खून उतर आता है तो कभी जब दिल पसीजता है, तो पानी उतर आता है। समंदर ही खारा नहीं होता, हमारा पसीना भी खारा होता है।
कभी जब आपकी उंगली कटती है, तो हम उसे मुंह में ले लेते हैं, हमें हमारे खून का स्वाद भी पता चलता है, आंसू भी गर्म और नमकीन और हमारी रगों में दौड़ता खून भी गर्म और नमकीन। खून की गर्मी ही तो जोश है, जिंदगी है।
उधर जवान सरहद पर खून बहाता है और इधर किसान खेत में पसीना बहाता है। खून और पसीने का कर्ज उतारना हम देशवासियोंके लिए इतना आसान भी नहीं होता।।
जैसा मौसम, वैसी हमारी तासीर। बारिश के मौसम में इधर चाय पी, उधर तुरंत लघु शंका। पानी पीते ही टॉयलेट। ठंड में पसीना नहीं आता, शरीर को गर्मी और धूप चाहिए। भूख भी
गजब की लगती है। ठंड में हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है।।
अभी तो गर्मी का मौसम अपने शबाब पर है। जून की शायरी मई में ही गुल खिला रही है ;
आजा मेरी जान,
ये है जून का महीना।
गर्मी ही गर्मी,
पसीना ही पसीना।।
जितना पसीना हम बहाते हैं, उतनी ही अधिक हमें प्यास लगती है। जो मेहनत अधिक करते हैं, उन्हें भूख भी अच्छी ही लगती है। भोजन से ही हमारा शरीर पुष्ट होता है, खून बढ़ता है, हमारी कार्य शक्ति प्रबल होती है।
खून पसीने से बना हमारा यह शरीर ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति है। जिस तरह कुदरत खाद, पानी और हवा से पेड़, पौधों को सींचती, पल्लवित करती, चंदन वन में परिवर्तित करती है, उसी तरह केवल खून पसीने से हमारा यह शरीर कुंदन सा महकता है। आरोग्य के मंत्र से बड़ा कोई महामृत्युंजय मंत्र नहीं, सोना चांदी च्यवनप्राश नहीं। सच्चा सुख, निरोगी काया। हमने व्यर्थ ही नहीं, खून पसीना बहाया।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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