श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जोर से बोलने वाला…“।)
अभी अभी # 376 ⇒ जोर से बोलने वाला… श्री प्रदीप शर्मा
जोर से बोलने वाला (loud speaker)
ईश्वर ने बोलने की शक्ति केवल इंसान ही को प्रदान की है, बाकी सभी प्राणी बिना बोले ही अपना काम चला लेते हैं। कुछ लोग कम बोलते हैं, तो कुछ लोग ज्यादा। फिल्म शोले में बसंती को ज्यादा बोलने की आदत नहीं थी। ऐसी कम बोलने वाली बसंतियां हमें घर घर में आसानी से नजर आ जाती हैं।
जो धीरे बोलते हैं, उन्हें अंग्रेजी में स्पीकर कहते हैं, और जो जोर से बोलते हैं, उन्हें लाउड स्पीकर। बच्चा जब पैदा होता है, तब सबसे पहले वह खुलकर रोता है। रोना स्वस्थ बच्चे की निशानी मानी जाती है। बच्चों की किलकारी किसी पक्षी की आवाज से कम मधुर नहीं होती। ।
आवाज हमारे गले के जिस स्थान से निकलती है, उसे कंठ (vocal chord) कहते हैं। आवाज कम ज्यादा, मोटी भारी, अथवा मधुर और कर्कश भी हो सकती है। कोकिल कंठी लता के गले में अगर सरस्वती विराजमान है, तो वाणी जयराम की आवाज में मानो रविशंकर की सितार बज रही हो। वीणा मधुर मधुर बोल।
हमारी लोकसभा और विधान सभा में अध्यक्ष महोदय होते हैं। न जाने क्यों, उन्हें स्पीकर महोदय कहा जाता है। वे खुद तो बेचारे कम बोलते हैं, सदन के सदस्यों को अधिक बोलने का मौका देते हैं। हर सदस्य के स्थान पर, बोलने के लिए स्पीकर लगा होता है, फिर भी वे जोर जोर से चिल्ला चिल्लाकर अपनी बात आसंदी तक पहुंचाते हैं।
कभी कभी तो ऐसा लगता है, मानो सदन में सिर्फ एक स्पीकर है और बाकी सभी लाउड स्पीकर। एक साथ कई लाउड स्पीकर की आवाज से स्पीकर महोदय परेशान हो जाते हैं और कुछ लाउड स्पीकर्स को सदन से बाहर कर देते हैं। ।
जब कोई आपकी बात शांति से नहीं सुनता, तब जोर से ही बोलना पड़ता है। बहुत कम घरों में ऐसे पति होते हैं, जो अपनी पत्नी की बात शांति से सुनते हैं। बेचारी पत्नी शांति से, सुनते हो, सुनते हो, करा करती है, लेकिन अखबार, टीवी और मोबाइल में एक साथ आंखें गड़ाए पति महोदय के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। तब मजबूरन धर्मपत्नी को लाउड स्पीकर का प्रयोग करना पड़ता है। जिसका अक्सर एक ही जवाब होता है, पति महोदय के पास, चिल्लाती क्यूं हो, मैं बहरा नहीं हूं। बोलो क्या बात है।
ज्यादा बोलने से गले की रियाज होती रहती है, जो कम बोलते हैं, कभी कभी तो उनकी आवाज वे खुद ही नहीं सुन पाते। एक रिश्ता वक्ता श्रोता का भी होता है। कुछ ओजस्वी वक्ता अटल बिहारी, जगन्नाथ राव जोशी, लोहिया और लाड़ली मोहन निगम जैसे भी होते थे, जिन्हें सुनने सत्ता, हो अथवा विपक्ष, सभी श्रोता जाते थे। अगर वक्ता ढंग का ना हो, तो वक्ता बकता रहता है, और श्रोता, सोता रहता है। केवल लाउड स्पीकर पर चिल्ला चिल्लाकर भीड़ इकट्ठी नहीं होती, आजकल भाड़े के टट्टू भी सभा में लाने पड़ते हैं। ।
आप स्पीकर हैं, अथवा लाउड स्पीकर, यह तो आप स्वयं ही बेहतर जानते हैं। अगर मोटिवेशनल स्पीकर हैं, स्कूल कॉलेज में पढ़ाते हैं तो अलग बात है, अन्यथा सामान्य वार्तालाप ऐसा हो कि आपकी आवाज से किसी तीसरे को व्यवधान ना हो। वॉल्यूम कम करना, बढ़ाना जब हमारे हाथ में है, तो अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण क्यों फैलाया जाए। जो हमारी बात नहीं सुनना चाहता, उसे क्यों व्यर्थ मजबूर किया जाए।
कथा कीर्तन, महिला संगीत, और जन्मदिन की पार्टी, कहां नहीं आजकल डीजे। और राजनीतिक सभाओं और रोड शो के शोर से हमें कौन बचाएगा। जब कानफोड़ू संगीत ही मधुर लगने लगे, तो आप सिर्फ अपना सिर ही धुन सकते हैं। भूल जाइए सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन। क्योंकि जगह जगह तो यही आवाज गूंज रही है ;
डीजे वाले बाबू
मेरा गाना बजा दो ..!!
केवल ध्वनि विस्तारक यंत्रों से ही नहीं, ध्वनि विस्तारक मित्रों से भी दूरी बनाए रखें। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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