श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सनातन में संशोधन …“।)
अभी अभी # 378 ⇒ सनातन में संशोधन… श्री प्रदीप शर्मा
सनातन कोई संविधान नहीं, जिसमें संशोधन किया जा सके। संविधान के निर्माता होते हैं, वह लिखित में होता है, इसलिए समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें संशोधन किया जा सकता है। सनातन के साथ ऐसा कुछ नहीं। जो सत्य है, वही सनातन है। सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना हुआ है। हमारे देश में वैदिक धर्म का इतिहास बहुत पुराना है। जो शाश्वत है, वही सनातन है।
जो सत्य है, शाश्वत है, वही सनातन है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को धर्म से लिंक करना बहुत जरूरी है, क्योंकि हिंदू धर्म के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ही इस सृष्टि के जन्मदाता, पालक और संहारक हैं।।
हमने पहले राजनीति को धर्म से लिंक किया और फिर धर्म को सनातन से लिंक कर दिया। जिस तरह आपके बैंक अकाउंट को आधार और पैनकार्ड से लिंक करना जरूरी है, उसी तरह धर्म का राजनीति और सनातन से लिंक करना भी उतना ही जरूरी है।
आज सनातन से सत्य गायब है, क्योंकि उसे धर्म और राजनीति से जोड़ दिया गया है। जो सत्य है वह सनातन नहीं, जो सनातन है वही सत्य है।
आपने सुना नहीं, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।।
वैसे भी आजकल सत्य को कौन परेशान कर रहा है।
सारे मनोरथ जब झूठ के सहारे पूरे हो रहे हों, तो सत्य को परेशान नहीं किया जाता। हमने फिर भी सत्य को सम्मान देने के लिए उसे राम नाम से जोड़ दिया है। राम नाम सत्य है, और यह निर्विवाद सत्य है।
हमें जब भूख लगती है, तो हम सच की सौगंध खा लेते हैं, थाने में हमें सच उगलवाना आता है। सच उगलवाने के लिए हमने मशीन भी इजाद की है।
पद और गोपनीयता की शपथ तो हमने कई बार खाई है, जब जब भी दल बदला है, पार्टी बदली है।।
सत्य सनातन नहीं, सनातन धर्म ही सत्य है। बस इसे राजनीति से लिंक करवाना जरूरी है। उसी से धर्म की रक्षा संभव है, सनातन सुरक्षित है। हमने सनातन में सिर्फ इतना संशोधन जरूर कर दिया है, सत्य सनातन नहीं, सनातन धर्म ही सत्य है। जाओ सत्य, तुम आजाद हो..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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