श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ककहरा…“।)
अभी अभी # 383 ⇒ प्यार की भूख… श्री प्रदीप शर्मा
भूख प्यास का आपस में वही संबंध है, जो दुःख दर्द का है, धूप छांव का है, दिन रात का है, जमीन आसमान का है, शरीर और आत्मा का है। हमें भूख भी लगती है और प्यास भी। भूख भोजन से ही मिटती है, और प्यास सिर्फ पानी से ही। कभी हम प्यासे मरते हैं, तो कभी भूखे। प्यासे को पानी, और भूखे को रोटी ही चाहिए।
प्यास कई तरह की होती है। हम यहां प्यार की प्यास की बात कर रहे हैं।
प्यार की प्यास किसे नहीं होती। क्या धरती और क्या आकाश, सबको प्यार की प्यास। प्यास और प्यार की कोई परिभाषा नहीं। संसार में इन दोनों का कोई विकल्प नहीं।।
क्या प्यार की भूख भी होती है। क्या भूख और प्यास की तरह हमें प्यार की प्यास और प्यार की भूख का भी अहसास होता है। शायद होता हो, लेकिन हमने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया। प्यार की भूख प्यास क्या अलग अलग होती है।
कहीं कहीं, केवल प्यार से बोले दो मीठे शब्द ही यह काम कर जाते हैं, तो कहीं कहीं स्पर्श की भी आवश्यकता होती है। गर्मजोशी से हाथ मिलाना, गले मिलना, मां को बच्चे को बेतहाशा चूमना चाटना यह प्यार की प्यास है या प्यार की भूख, कहना आसान नहीं। बच्चे को भी प्यार की भूख होती है, हम उसके गाल पर पप्पी देते हैं, उसकी भूख शांत हो जाती है। आवेश, आलिंगन भी प्यार की भूख प्यास के ही संकेत हैं। अगर आप इसे अलग कर सकें तो करें।।
प्यार के मनोविज्ञान में हम नहीं चाहते, महात्मा फ्रायड दखलंदाजी करें। क्योंकि यही प्यार की भूख प्यास जब मीरा की राह पकड़ लेती है, तो मामला जिस्मानी से रूहानी हो जाता है। शायर इसे अपनी जबान में इस तरह बयां करता है ;
ये मेरा दीवानापन है
या मोहब्बत का सुरूर।
तू ना समझे तो है ये
तेरी नजरों का कुसूर।।
इंसान के पास तो जुबान है, वह अपनी बात कह सकता है, लेकिन जो पशु पक्षी बेजुबान हैं, क्या उनको भी प्यार की भूख प्यास का अहसास होता है। बिना प्रेम के कोई पशु पक्षी आपके पास नहीं फटकने वाला। जो सभी बेजुबान पशु पक्षियों को एक ही लठ से हांकते हैं, उन्हें जल्लाद कहा जाता है, इंसान नहीं।
गाय कुत्तों से हमारा बचपन से साथ रहा है। हमने इन्हें कभी पाला नहीं, बस जब कभी सामने आए, एक रोटी डाल दी और उन्हें पुचकार लिया, गाय की पीठ पर हाथ फेर दिया। गाय का शरीर प्रेम का स्पर्श पा सिहर उठता है, और कुछ ही देर में वह मुंह ऊंचा कर देती है, इस अपेक्षा के साथ कि आप उसकी गर्दन पर भी हाथ फेर देंगे। चौपायों के कहां हाथ होते हैं। इस वक्त हमें हमारी पीठ याद आ जाती है, जहां तक हमारे पूरे हाथ नहीं पहुंच पाते।।
पालतू पशु पक्षियों की अच्छी देखभाल होती है, अतः सावधानीपूर्वक उन्हें स्पर्श किया जा सकता है।
कुत्ता तो वैसे ही स्वामिभक्ति के लिए बदनाम है। स्वामी के लिए भक्ति का भाव कहें, अथवा कृतज्ञता का भाव, वह उसके चेहरे पर साफ झलकता है। इन प्राणियों का भाव इनकी आंखों में आसानी से पढ़ा जा सकता है। इनकी आंखें प्यार के लिए तरसती हैं, ये हमेशा प्यार के भूखे होते हैं।
उम्र और समझ में छोटे, लेकिन आकार में बड़े, इनके साथ बच्चे भी खेलते हैं, और बड़े भी।
बच्चों को इनके पिल्लों के साथ खेलने में बड़ा मजा आता है। आखिर उस उम्र में उनमें कहां भेद बुद्धि। फिर भी बड़ों की डांट तो खानी ही पड़ती है, छि: चलो घर, चलो हाथ पैर धोओ।
अगर इन पालतू कुत्तों को अनुशासित नहीं किया जाए, तो कभी कभी इनका प्यार महंगा भी पड़ सकता है। वह नासमझ प्राणी चाहता है, आप उसके साथ बच्चों की तरह खेलो। इस लाड़ प्यार में कभी उसके नाखून तो कभी उसके दांत आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं। आखिर है तो वह जानवर ही।।
पक्षियों को पिंजरे में रखना अपराध है, फिर भी तोता पालना हमारी पुरानी परम्परा है। भागवत कथाओं में तो आपको, कहीं ना कहीं, एक शुकदेव जी पिंजरे में नजर आ ही जाएंगे। प्यार तो प्यार है, घरों में मछलियां भी पाली जाती हैं और कछुआ और खरगोश भी।
अजीब है यह, प्यार की भूख प्यास, कभी लौकिक, कभी अलौकिक ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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