श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “लंबी गहरी साॅंस (Deep breathing)।)

?अभी अभी # 386 लंबी गहरी साॅंस (Deep breathing) ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

क्या कभी आपने चैन की सांस ली है, ली होगी कई बार ली होगी। चैन की सांस का हठयोग में कहीं कोई जिक्र नहीं, कोई अभ्यास नहीं। हमारा तो सांस पर कभी ध्यान ही नहीं रहता, कौन सी सांस चैन की है, और कौन सी बैचेनी की। जिस सांस से चैन की बंसी बजाई जाए, उसे आप चैन की सांस कह सकते हैं।

चैन की सांस ही नहीं, चैन की नींद भी होती है। नींद का नाम ही चैन है, जहां चैन नहीं, वहां आंखों में नींद नहीं। चैन की सांस और चैन की नींद ईश्वर ने हर प्राणी के लिए बनाई है, ईश्वर इस बारे में कोई भेद नहीं करता, अमीरी गरीबी का, छोटे बड़े का, साधु और शैतान का।।

अगर आपका चैन छिन गया, तो आप जैसा कोई दुखी प्राणी नहीं। “हम प्यार में जलने वालों को, चैन कहां, आराम कहां”। बैचेनी किसी बीमारी से भी हो सकती है और दुख, संताप और व्यथा से भी हो सकती है। होते हैं कुछ ऐसे लोग, जिनसे अक्सर यही शिकायत रहती है कि ;

कुछ नहीं कहते,

कुछ नहीं कहते।

अपनी तो ये आदत है

कुछ नहीं कहते

कुछ नहीं कहते।।

और कभी कभी जब सब्र का बांध टूट पड़ता है, तो अंदर दबी कड़वाहट कुछ इस तरह बाहर फूट पड़ती है ;

चैन से हमको कभी

आपने जीने ना दिया।

जहर भी चाहा अगर पीना,

तो पीने ना दिया।।

तो क्या बेसब्री और बैचेनी, सब सांस का खेल है। हम डॉक्टर के पास जाते हैं, वह आंखें देखता है, जबान देखता है, कलाई पकड़ता है, अपने यंत्र से दिल की धड़कन नापता है और लंबी गहरी सांस लेने और छोड़ने को कहता है।

सांस की गति से वह जान जाता है, गले, फेफड़े की स्थिति, और सर्दी, जुकाम, खांसी का असर।

एक कविता में डा सुमन ने हमसे बचपन में सांसों का हिसाब पूछा था, हम कुछ समझे नहीं थे ;

तुमने जितनी सांसें खींची, छोड़ी हैं

उनका हिसाब दो और करो रखवाली

कल आने वाला है साँसों का माली …

लेकिन उम्र के साथ सांस का महत्व भी समझ में आ गया। सांस जितनी लंबी और गहरी होगी, मन उतना ही शांत होगा। लंबी गहरी सांस में सिर्फ रेचक और पूरक होता है, कुंभक नहीं होता। मनुष्य नाक से सांस लेता है, इसलिए उसकी उम्र ज्यादा है। जो प्राणी मुंह से सांस लेते हैं, उनकी उम्र कम होती है। कुत्ता हमेशा मुंह से ही सांस लेता है। जो प्राणी जमीन के अंदर होते हैं, उन्हें कम सांस लगती है। कछुए की उम्र अधिक होती है। मेंढक तो प्राकृतिक आवासों में हाइबरनेशन पीरियड में चले जाते हैं। महीनों सांस रोके पड़े रहते हैं।।

आप प्राणायाम करें ना करें, लेकिन क्रोध, अवसाद एवं बैचेनी की अवस्था में लंबी गहरी सांस अवश्य लें। रात को सोते वक्त भी अगर लंबी गहरी सांस ली जाए, तो मन शांत हो जाता है, और चैन की नींद नसीब होती है।

हमारी ईश्वर से प्रार्थना है, हमारी हर सांस, चैन की सांस हो। हमारे शहर में कहीं चैनसिंह का बगीचा था। अगर हमारे मन की बगिया में ही सुख, संतोष और चैन के फूल उगने लगे तो शायद हमें कभी लंबी गहरी सांस लेने की आवश्यकता नहीं पड़े।

जब भी बैचेनी महसूस हो, लीजिए लंबी गहरी सांस। देखिए, महसूस कीजिए, सांस का चमत्कार और सदा लीजिए चैन की सांस।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments