श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “बरगद…“।)
अभी अभी # 388 ⇒ बरगद… श्री प्रदीप शर्मा
मैं जड़ हूँ !
जड़ से चेतन हुआ।
ज़मीन से निकला
बड़ा हुआ !
बरगद, खुशी से गदगद।
मेरी जड़ें ज़मीन में हैं
ज़मीन में ही गड़ी जाती हैं।
हाँ मैं बूढ़ा हूँ, बुजुर्ग हूँ
ज़मीन से जुड़ा हूँ।
सबको छाया देता,
पंछियों को विश्राम।।
बट सावित्री पर मेरी
पूजा करती महिलाएँ
पर्यावरण का रखवाला
बूढ़ा बरगद।। मैं जड़ हूँ !
जड़ से चेतन हुआ।
ज़मीन से निकला
बड़ा हुआ !
बरगद, खुशी से गदगद।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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