श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मुफ़्त हवा…“।)
अभी अभी # 391 ⇒ मुफ़्त हवा… श्री प्रदीप शर्मा
जब हरि ओम् शरण ने यह भजन गाया होगा ;
ना ये तेरा, ना ये मेरा
मंदिर है भगवान का।
पानी उसका, भूमि उसकी
सब कुछ उसी महान का …
तब शायद उन्हें यह अंदेशा नहीं होगा कि भले ही भूमि और जल पर उस महान का वरद हस्त है, शुद्ध हवा पर अब किसी की नजर लग गई है। आबोहवा अब हवा हो गई, आब अलग हो गया, हवा अलग हो गई। हवा में अब वो आब नहीं। अरे ओ आसमां वाले, तेरे पास भी इसका कोई जवाब नहीं।
तब हम शुद्ध हवा को ही ऑक्सीजन समझते थे। स्कूल कॉलेज के दिनों में उठाई साइकिल, और निकल पड़े कस्तूरबा ग्राम, टिंछा बाल, पाताल पानी और देवगुराड़िया। पीने के लिए पानी की बोतल कभी साथ नहीं रखी, लेकिन साइकिल में पंक्चर और हवा भराने के लिए पैसे ज़रूर रखना पड़ते थे, क्योंकि पग पग रोटी, डग डग नीर की व्यवस्था तो हो सकती थी लेकिन साइकिल के लिए मुफ्त हवा तब भी उपलब्ध नहीं थी।।
एक होता है कृषि विज्ञान जिसे हम एग्रीकल्चर कहते हैं, इसी तरह एक उद्यान विज्ञान भी होता है, जिसे हार्टिकल्चर कहा जाता है। खेती तो किसान ही कर सकता है, महानगरों को हवादार, प्रदूषण मुक्त और पर्यावरण युक्त बनाने के लिए जितना वृक्षारोपण जरूरी है, उतने ही बाग बगीचे भी। एक वर्ष हो गया सुबह घर से निकले, शुद्ध हवा का सेवन किए। मुंह पर मास्क लगाकर शुद्ध हवा तो छोड़िए, मुंह से शुद्ध बोल तक नहीं निकल पाते। मास्क कोई हवा में उड़ता लाल दुपट्टा मलमल का नहीं, एक संस्कारी बहू के पल्ले की तरह, मास्क को कायदे से मुंह पर ही होना चाहिए।
आवश्यकता आविष्कार की जननी है। किसे पता था कि जैन मुनियों की तरह हमें भी पानी को उबालकर और छानकर पीना पड़ेगा, मुंह पर कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहनना पड़ेगा। कौन जानता था, अहिंसा के देश में, जहां कीड़े मकोड़ों तक को नहीं मारा जाता, कोई जैविक हथियार इतना शक्तिशाली सिद्ध होगा जो हमें पूरी तरह अशक्त, अहिंसक और असहाय बना देगा। पर्यावरण इतना निस्तेज हो जाएगा कि फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी और कृत्रिम ऑक्सीजन के अभाव में लाचार इंसान सांस तक नहीं ले पाएगा। किसकी सांस आखरी हो, पता नहीं।।
जहां चाह है, वहां राह है। अच्छे दिनों का इंतजार और अभी, और अभी, और सही। साल भर में कोरोना ने बहुत कुछ सिखाया है, कपूर, अजवाइन, तुलसी, गिलोय, गर्म पानी की भाप और लंबी गहरी सांस। गर्मी तो है, पर लोहा ही लोहे को काटता है। सुबह सुबह तो गर्म पानी पी ही लीजिए। केवल सरकार पर ही नहीं, उस अलबेली सरकार पर भी भरोसा रखें। वेक्सिन का दौर चल रहा है। सभी टीवी सीरियल के पार्ट 2 पर्दे पर आ गए हैं। मोदी सरकार की भी तीसरी पारी शुरू हो गई है। करन अर्जुन आएं ना आएं, हमारे अच्छे दिन आएंगे, आएंगे, जरूर से आएंगे। फिर सबका चेहरा गुलाब सा खिलेगा पर्दा हटेगा, हुस्न का जलवा फिर बिखरेगा। तब हम सब चैन की सांस लेंगे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈