श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सेवारत और निवृत्त”।)
अभी अभी # 397 ⇒ सेवारत और निवृत्त श्री प्रदीप शर्मा
हम सभी की कमोबेश एक ही स्थिति है, कोई सेवारत है तो कोई सेवानिवृत्त। सेवा को अंग्रेजी में सर्विस कहते हैं, और सेवक को सर्वेंट। सेवा और सेवक कितने सुंदर शब्द हैं जब कि सर्विस और सर्वेंट जैसे शब्दों में वह सम्मान और गरिमा कहां। वही मजबूरी जो नौकर और नौकरी जैसे शब्दों में है। आज एक करोड़ के पैकेज को कोई विरहन दो टकियां दी नौकरी कहने की जुर्रत नहीं कर सकती।
आप भले ही चपरासी को भृत्य कह लें और नाच को नृत्य, लिपिक, बाबू और क्लर्क आपको एक ही कतार में खड़े मिलेंगे। जहां सेवा के साथ परिश्रमिक जोड़ दिया जाता है, उसमें सेवा की जगह पेशेवर दृष्टिकोण उजागर हो जाता है। फिर भी अफसरी और एंप्लॉयर में जो रौब और रुतबा है वह एक अदद बाबू अथवा साधारण एम्प्लॉई में नहीं।।
क्या सेवानिवृत्त होते से ही हमें काम के साथ सेवा से भी निवृत्त कर दिया जाता है। खेल खतम, पैसा हजम। भाई आपने नौकरी छोड़ी है, सेवा करने से आपको कौन रोक रहा है। सेवा शब्द तो काम धंधे और नौकरी पर सोने चांदी की पॉलिश है जो सेवानिवृत्त होते ही उतर जाती है। हां पैंशन डकारते वक्त कभी कभी शासकीय सुविधा, भत्ते, दौरे और ऊपरी इनकम जरूर याद आ जाती है।
जिन्होंने जीवन भर ईमानदारी से सेवा की है, वे आज भी कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ रचनात्मक कार्य से अपने समय का सदुपयोग कर रहे होंगे। सेवा का क्षेत्र और दायरा बड़ा विस्तृत और विशाल है। कार्य से निवृत्ति तो संभव है, लेकिन सेवा से निवृत्ति इतनी आसान नहीं। माया तो आपको मिल ही गई जब आप सेवारत थे, अब अपने राम, निः स्वार्थ सेवा अथवा परमार्थ से जुड़ जाएं, तो शायद राम भी मिल जाएं।।
केवल कवि की ही दृष्टि रवि से भी अधिक दूर की नहीं होती, एक सच्चे सेवक प्रशासक की दूर दृष्टि से कोई सेवा कार्य बच नहीं सकता। रिटायर होते ही कई सामाजिक संस्थाएं, यानी NGO’s अपने द्वार उनके लिए खोल देती हैं। योग्य और काबिल इंसान की कहां कद्र नहीं।
सेवानिवृत्ति उन्हें पुनः निष्काम सेवा की ओर प्रवृत्त करती है। सेवा में भी इनबिल्ट पैकेज होता है, करोगे सेवा, तो पाओगे मेवा। निष्काम कर्म में भले ही फल की आशा ना करें, लेकिन सेवा कभी निष्फल नहीं जाती। यश, कीर्ति और सम्मान अगर मिलता रहे, तो सेवानिवृत्ति का कोई मलाल नहीं रह जाता।।
सच्ची सेवा तो ईश्वर की सेवा होती है, लेकिन ईश्वर है कि कहीं नजर ही नहीं आता। जो कार्य सेवारत रहते हुए नहीं कर पाए, अगर वही कार्य सेवा समझकर सेवा निवृत्ति के बाद कर लिया जाए, तो क्या बुरा है।
अब तो सेवा भी कंज्यूमर आइटम हो गई है। सभी सुविधाएं आजकल सेवा ही कहलाने लग गई है। पूरा बाजार आपकी सेवा के लिए 24×7 तत्पर है। सरकार सबसे बड़ी सेवा, हम पर जीएसटी लगाकर कर रही है। सेवा के द्वार खुले हैं, आप भी सेवा कीजिए, पैसा और पुण्य दोनों कमाइए। देश को समृद्ध, मजबूत और एक विकसित राष्ट्र बनाइए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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