श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सदा दिवाली संत की…“।)
अभी अभी # 400 ⇒ सदा दिवाली संत की… श्री प्रदीप शर्मा
क्या आपने कभी संतों को दीवाली मनाते देखा है, अथवा किसी भूखे को उपवास करते देखा है। आम आदमी ना तो रोज दशहरा दिवाली मना सकता है और ना ही सप्ताह में चार चार दिन व्रत उपवास रख सकता है। एक भूखे का तो यूं ही रोज उपवास रहता है, ठीक उसी तरह संतों की भी रोज दिवाली रहती है।
कबीर हमें यूं ही नहीं याद आ जाते ;
सदा दिवाली संत की, बारह मास बसंत।
प्रेम रंग जिन पर चढ़े, उनके रंग अनंत।।
आप मानें या ना मानें, जबसे हमारी मध्यप्रदेश सरकार ने लोकसभा में शत प्रतिशत सफलता 29/29 पाई है, उस पर होली और दिवाली दोनों का रंग एक साथ चढ़ गया है। हम एम पी वाले अपनी खुशी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। कबीर की मस्ती हम पर दिन रात छाई रहती है और हमारी इसी स्थिति को देखकर हमारी सरकार ने रात को भी दिन में बदलने का निर्णय लिया है, अब एम पी के कुछ शहर 24×7 जागते रहेंगे।
वैसे तो स्मार्ट शहर कभी सोते नहीं। अब तक तो हमने केवल बंबई(मुंबई) को ही रात की बाहों में देखा था, अब हमारे इंदौर सहित कुछ प्रदेश भी आपका रात की जगमगाती रोशनी में बाहें फैलाकर आपका स्वागत करेंगे।।
हमें इंदौर के वे पुराने दिन अनायास ही याद आ गए, जब कपड़ा मिलों की चिमनियां लगातार धुंआ उगलती थी, और मिलों के सांचे कभी रुकने का नाम नहीं लेते थे। मिल मजदूरों के कारण पूरा इंदौर रात भर जागता रहता था। होटलें और चाय की दुकानें कभी बंद ही नहीं हो पाती थी।
दिवाली की रोशनी और होली और रंग पंचमी की रंगारंग हुड़दंग छोड़िए, गणेशोत्सव का दस दिन का उत्साह अपनी जगह, और अनंत चतुर्दशी के रोज तो पूरा इंदौर रात भर जागता रहता था। आसपास के शहर, गांव और कस्बों की भीड़ की भीड़ मिलों की झांकियां और अखाड़ों के प्रदर्शन के लिए दौड़ी पड़ती थी। इंदौर के छविगृह भी सुबह से देर रात तक विशेष शोज़ चलाते थे। प्रदेश का एकमात्र शहर था इंदौर जहां उस दिन रतजगा रहता था।।
घरों में तो लोग रात रात भर जाग ही रहे हैं, टीवी मोबाइल और इंटरनेट कहां किसी को आजकल सोने देता है। आज की युवा पीढ़ी रात को तीन बजे सोती है, कभी किसी का जन्मदिन तो कभी रात रात भर पढ़ाई। घर घर रात भर डीजे की आवाज सुनी जा सकती है और बेचारा जोमैटो वाला रात को बारह बजे तक होम डिलीवरी किया करता है, पिज्जा, पास्ता, केक, पेस्ट्री और मन्च्युरियन की। देशी विदेशी का अपना अपना नशा है।
अब घरों में शांति रहेगी, बाहर जाइए रात भर एन्जॉय कीजिए, जो लोग घरों में आठ घंटे चैन की नींद सीना चाहते हैं, उनके लिए यह खुशखबर है।
सरकार भी खुश आप भी खुश। संत और आज की युवा पीढ़ी अपने अपने हिसाब से दिवाली और वसंत मना रहे हैं। इधर हम भी दोनों नावों में सवार होना चाहते हैं, झूठ क्यूं बोलें ;
साक़िया, आज मुझे नींद नहीं आयेगी।
सुना है तेरी महफ़िल में
रतजगा है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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