श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “निन्यानवे का फेर …“।)
अभी अभी # 402 ⇒ निन्यानवे का फेर … श्री प्रदीप शर्मा
जिस तरह एक और एक ग्यारह होते हैं, दो नौ मिलकर निन्यानवे होते हैं। इकाई की सबसे बड़ी संख्या अगर ९ है, तो दहाई की ९९ . किशोर उम्र को अंग्रेजी में teen age कहा जाता है, जो तेरह से उन्नीस बरस की होती है। क्रिकेट के बल्लेबाज की भी एक स्थिति होती है, जिसे नर्वस नाइंटीज कहते है। चौके छक्के लगाकर नब्बे तक तो शान से पहुंच गए, इक्यानवे से शुरू होकर यह निन्यानवे पर ही खत्म होती है। कई अच्छे अच्छे बल्लेबाज इस संख्या के बीच अपनी विकेट गंवा बैठते हैं, कुछ तो निन्यानवे के फेर में केवल एक रन से शतक चूक जाते हैं। वीर और शतकवीर के बीच केवल एक रन की ही तो दूरी रहती है।
यह निन्यानवे का फेर भी अजीब है। हम तो खैर अपने समय में इतने प्रतिभाशाली छात्र थे, कि आय नेवर स्टुड सेकंड। हमने हमेशा गांधी डिविजन से ही काम चलाया। लेकिन एक आज की पीढ़ी है, डिविजन से नहीं परसेंटेज से चलती है और वह भी ९०-९५ प्रतिशत से इनका काम नहीं चलता। प्रतिस्पर्धा की दौड़ ही ९९ प्रतिशत से शुरू होती है। ९९.१ से ९९.९ तक प्रतिस्पर्धा ही प्रतिस्पर्धा।
यहां निन्यानवे के फेर में कोई नहीं, शत प्रतिशत में उनका विश्वास होता है। वाकई यह नालंदा की पीढ़ी है, इसमें कोई शक नहीं। ।
बड़ा अजीब है यह अंक ९९, जब अथ श्री महाभारत कथा में योगेश्वर श्री कृष्ण शिशुपाल को निन्यानवे गालियों तक अभयदान का आश्वासन देते हैं, लेकिन जब शिशुपाल यह ९९ की लक्ष्मण रेखा भी पार कर जाता है, तो शिशुपाल का खेल खत्म हो जाता है।
राजनीति में भी एक मुक्त और विलुप्त होने के कगार पर खड़ी पार्टी जब इस बार के लोकसभा चुनाव में ९९ सीट ले आती है, तो हमारे जैसा आम व्यक्ति अनायास ही ध्यानस्थ हो जाता है। क्या ध्यान से सांसारिक अथवा राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है। उधर एक ईश्वर का अवतार चुनाव के बीचोबीच ४५ घंटे का ध्यान करता है, और इधर उसकी घोर विरोधी पार्टी की सीट ५५ से ९९ हो जाती है। अजीब चमत्कार है ध्यान का। ध्यान कोई करे और लाभ किसी और को ही मिले। ।
आजकल सभी निन्यानवे के फेर में लगे हैं। योग से रोग भगाया जा रहा है और पैसा कमाया जा रहा है। ईश्वर से जोड़ने वाले योग को भी टुकड़ों टुकड़ों में बांट दिया है। यम नियम को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और काक चेष्टा बको ध्यानं, के मंत्र को व्यवहार में लाते हुए, मोटिवेशनल स्पीच और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे सफलता के सोपान तय किए जा रहे हैं।
मैं भी आजकल निन्यानवे के फेर में हूं। संगीत सुनने और धारणा ध्यान में व्यर्थ समय ना गंवाते हुए संगीत और योग से बीमारियां कैसे दूर हों, इस पर पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा हूं। अपने ज्ञान ध्यान का अगर दुनिया को लाभ ना हो, और दो पैसे अगर हम भी नहीं कमाएं, तो समझिए ;
रे मन
मूरख जनम गॅंवायौ। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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