श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| रबड़ी प्लेट ||…“।)
अभी अभी # 413 ⇒ || रबड़ी प्लेट ||… श्री प्रदीप शर्मा
आप भले ही लड्डू को मिठाइयों का राजा मान लें,लेकिन जलेबी, इमरती और रबड़ी का नाम सुनकर ज़रूर आपके मन में लड्डू फूट पड़े होंगे । जिन्हें गुलाब जामुन पसंद है,उन्हें मावा बाटी की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। होते हैं कुछ लोग, जो चाशनी से परहेज करते हैं,लेकिन रसगुल्ला देख,उनके मुंह से भी पानी टपकने लगता है।
हम तो शुगर को शक्कर ही समझते थे,लेकिन जब से सुना है, शुगर एक बीमारी भी है, हमने भी मीठे से परहेज करना शुरू कर दिया है । लेकिन चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से ना जाए, रबड़ी तब भी हमारी कमजोरी थी,और आज भी है ।।
कुछ समय के लिए शुगर को भूल जाइए,आइए रबड़ी की बात करें । ठंडी रातों में दूध के कढ़ाव और केसरिया,मलाईदार दूध,रबड़ी मार के ,मानो चाय मलाई मार के । गर्मी में मस्तानी दही की लस्सी और वह भी रबड़ी मलाई मार के । खाने वाले खाते होंगे दही के साथ गर्मागर्म जलेबी,हम तो जलेबी भी रबड़ी के साथ ही खाते हैं ।
आज हम जिस रबड़ी प्लेट का जिक्र कर रहे हैं,उसके लिए हमें थोड़ा अतीत में जाना पड़ेगा । नालंदा जितना अतीत नहीं,फिर भी कम से कम पचास बरस। हमारे होल्करों के शहर इंदौर के बीचों बीच एक श्रीकृष्ण टाकीज था,जहां गर्मियों में सुबह साढ़े आठ बजे एक ठेला नजर आता था,जो हीरा लस्सी के नाम से प्रसिद्ध था । यह लस्सी केवल गर्मियों में ही नसीब होती थी । एक बारिश हुई,और वहां से ठेला नदारद ।
एक श्रृंगारित ठेला,जिसमें कई शरबत की बोतलें सजी हुई,ठेले के नीचे के स्टैण्ड पर कई ताजे दही के कुंडे, ठेले के बीच टाट पर विराजमान एक बर्फ की शिला, एक विशाल तपेले में,लबालब रबड़ी और इन सबके बीच कार्यरत एकमात्र व्यक्ति हीरा और उनका चीनी मिट्टी का बड़ा पात्र और एक लकड़ी की विशाल रवई,दही को मथने के लिए । (सब कुछ हाथ से ही) हीरा लस्सी ही उस लस्सी का ब्रांड था, जो किसी जमाने में आठ आने से शुरू होकर दस रुपए तक पहुंच गई थी । पहले कुंडे से दही निकालकर तबीयत से मथना,फिर कांच के ग्लासों में बर्फ छील छीलकर डालना,लस्सी और बोतलों में रखे शकर के केसरिया शरबत को मिलाना,और ग्लासों को लस्सी से भरना, फिर थोड़ी रबड़ी और उसके बाद लबालब लस्सी पर दही की मलाई की एक मोटी परत। लीजिए, हीरा लस्सी तैयार ।।
हमारा विषयांतर में विश्वास नहीं। वहां रबड़ी प्लेट भी उपलब्ध होती थी,जो मेरी पहली और आखरी पसंद होती थी । भाव लस्सी से उन्नीस बीस,लेकिन एक कांच की बड़ी प्लेट में लच्छेदार रबड़ी, उस पर थोड़ा बर्फ का चूरा और ऊपर से गुलाब का शर्बत । एक लोहे की डब्बी में काजू,बादाम,पिस्ते का चूरा लस्सी और रबड़ी प्लेट दोनों पर कायदे से बुरकाया जाता था । तब जाकर हमारी रबड़ी प्लेट तैयार होती थी ।
हाइजीन वाले हमें माफ करें,क्योंकि हम रबड़ी प्लेट खाने के बाद हाथ नहीं धोते थे,रबड़ी और गुलाब के शरबत की खुशबू हमारे हाथों में हमारे साथ ही जाती थी और साथ ही जबान पर रबड़ी प्लेट का स्वाद भी ।।
आज न तो वहां श्रीकृष्ण टाकीज है और ना ही वह हीरा लस्सी वाला । पास में बोलिया टॉवर के नीचे,उसके वंशज जरूर फ्रिज में रखी लस्सी,हीरा लस्सी के नाम से,साल भर बेच रहे हैं,लेकिन वह बात कहां ।
जिस तरह शौकीन लोग,अपना शौक घर बैठे भी पूरा कर लेते हैं,हमारी रबड़ी प्लेट भी आजकल घर पर ही तैयार हो जाती है । तैयार केसरिया रबड़ी मांगीलाल दूधवाले अथवा रणजीत हनुमान के सामने विकास रबड़ी वाले के यहां आसानी से उपलब्ध हो ही जाती है,बस एक प्लेट में रबड़ी पर थोड़ा सा ,मौसम के अनुकूल बर्फ और गुलाब का शर्बत ही तो डालना है,लीजिए,रबड़ी प्लेट तैयार । शौकीन हमें ज्वाइन कर सकते हैं ।।
विशेष : शुगर फ्री वालों से क्षमायाचना सहित …!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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