श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पार्ट टाइम/फुल टाइम…।)

?अभी अभी # 420 ⇒ पार्ट टाइम/फुल टाइम? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ शब्द इतनी आसानी और सहजता से हमारी बोलचाल में शामिल हो गए हैं कि हम उसे किसी अन्य भाषा में न तो समझ सकते हैं, और ना ही समझा सकते हैं। पार्ट टाइम के साथ तो जॉब लगाने की भी आवश्यकता नहीं होती। जब कि नौकरी, धंधा, कृषि व्यवसाय अथवा महिलाओं का गृह कार्य फुल टाइम कहलाता है। सुविधा के लिए आप चाहें तो इन्हें अंशकालिक और पूर्णकालिक कार्य कह सकते हैं।

पार्ट टाइम में समय की सीमा होती है, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना, संगीत और नृत्य की शिक्षा के अलावा हमारे घर की कामवालियों की भी गिनती पार्ट टाइम जॉब में ही होती है। कुछ लोग मजबूरी में, अथवा आदतन फुल टाइम जॉब और पार्ट टाइम जॉब दोनों साथ साथ करते हैं। आठ घंटों का फुल टाइम और बाकी समय में कहीं पार्ट टाइम। ।

पार्ट टाइम में जहां समय सीमा निर्धारित होती है, फुल टाइम अपने आपमें पूरी तरह स्वतंत्र है। किसी नौकरी का फुल टाइम आठ अथवा दस घंटे का भी हो सकता है, जब कि एक किसान अथवा गृहिणी फुल टाइम काम करते हुए भी समय के बंधन से बंधे हुए नहीं है। जो बेरोजगार, निकम्मे, निठल्ले अथवा नल्ले हैं, वे तो फुल टाइम फ्री हैं।

हर व्यक्ति की कार्य करने की स्थिति, कार्य का तरीका और पद्धति अलग अलग हो सकती है, कहीं मेहनत मजदूरी तो कहीं लिखने पढ़ने का काम और कहीं प्रशासनिक जिम्मेदारी। ऑफिस अवर्स में कौन फुल टाइम काम करता है, और कौन गप्पें मारता रहता अथवा चाय पीते रहता है, यह भी काम के तरीके और व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है।।

फुल टाइम हो अथवा पार्ट टाइम, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपने व्यवसाय से अलग हटकर भी कुछ काम कर गुजरते हैं, इसके लिए वे जो समय निकालते हैं, वही टाइम मैनेजमेंट कहलाता है। फुरसत का समय तो हमेशा जीवन में एक्स्ट्रा और फ्री होता है, बिल्कुल फ्री।

जितनी भी ललित कलाएं हैं, उनमें साहित्य, संगीत, कला, वास्तु और अध्यात्म जैसी अनगिनत विधाएं शामिल हैं, जो व्यक्ति के जीवन को एक सार्थक दिशा देती है। वह अपने दैनिक जीवन के पार्ट टाइम और फुल टाइम के अलावा भी कुछ समय चुरा लेता है, और इन विधाओं में पारंगत हो, समय और जीवन को एक खूबसूरत मोड़ दे देता है।।

रोजी रोटी के साथ एक समानांतर यात्रा सृजन की भी चलती रहती है, जिसमें कहीं कला है, तो कहीं संगीत, कहीं नृत्य है तो कहीं साहित्य सृजन। हर व्यक्ति के पास उतना ही समय है, कोई उसमें पैसा कमाकर भौतिक सुखों का उपभोग कर रहा है, तो कोई निःस्वार्थ रूप से समाज सेवा कर रहा है।

हम सबके पास एक जैसा फुल टाइम है तो किसी के पास पार्ट टाइम। फिर भी अपने शौक और जुनून के लिए एक्स्ट्रा टाइम सब निकाल ही लेते हैं। समय को चुराना कहां सबको आता है। हमारा खूबसूरत कला और साहित्य का संसार इन्हीं फुल टाइम और पार्ट टाइम और उसके टाइम मैनेजमेंट की ही देन है। आइए, थोड़ा समय चुराएं।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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