श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अमृत वेला…“।)
अभी अभी # 426 ⇒ अमृत वेला… श्री प्रदीप शर्मा
अमृत वेला होया
तू तो सोया होया
अमृत वेला का तात्पर्य किसी विशिष्ट समय से नहीं है। पहर की समय प्रणाली के अनुसार, अधिकांश सिख आमतौर पर इस समय की शुरुआत लगभग 3:00 बजे से करते हैं। जपजी साहिब में गुरु नानक कहते हैं, “अमृत वेला में एक सच्चे नाम की महिमा पर ध्यान करें”। अमृत वेला का महत्व संपूर्ण गुरु ग्रंथ साहिब में मिलता है।
साधारण भाषा में हमें बताया जाता था ;
Early to bed and early to rise
Is the way to be healthy wealthy and wise.
बड़े होकर भी यही सीख;
उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
अब रैन कहाँ जो सोवत है, जो सोवत है वो खोवत है, जो जागत है सो पावत है।।
आदर्श अपनी जगह, लेकिन बच्चों को सुबह जल्दी उठाना, हमें किसी सजा से कम नहीं लगता था। दिन भर खेलकर थक जाना, और सुबह उन्हें कान पकड़कर उठाना। लेकिन उन्हें अच्छा बच्चा भी तो बनाना है। अच्छे बच्चे देर तक नहीं सोते। अपना सबक सुबह जल्दी उठकर याद करते हैं। सुबह सब कुछ जल्दी याद हो जाता है।।
आज की युवा पीढ़ी रात रात भर जागकर अपना कैरियर बना रही है, पढ़ने लिखने और जीवन में कुछ बनने के लिए क्या दिन और क्या रात। उनके लिए तो मानो 24×7 दिन ही दिन है। चैन की नींद उनके नसीब में नहीं।
एक समय ऐसा भी आता है, जब जीवन का निचोड़ हमारे हाथ लग जाता है। सब कुछ पाने के बाद कुछ भी नहीं पाने की स्थिति जब आती है, तब जीवन में अध्यात्म का प्रवेश होता है। एक नई तलाश उस अज्ञात की, जिसे केवल अपने अंदर ही खोजा जा सकता है।।
उसे अपने अंदर खोजने, उससे एकाकार होने का सबसे अच्छा समय यह अमृत वेला ही है। यही वह समय है, जब आसुरी वृत्तियां घोड़े बेचकर सो रही होती हैं, और दिव्य शक्तियां अपने पूरे प्रभाव में सक्रिय रहती हैं। ध्यान का इससे कोई बढ़िया समय नहीं। आप ध्यान कीजिए, आसमान से अमृत बरसेगा।
लेकिन उधर कबीर साहब फरमाते हैं ;
आग लगी आकाश में झड़ झड़ पड़े अंगार,
संत न होते जगत में तो जल मरता संसार”
अवश्य ही उनका आशय किसी सतगुरु से ही होगा।
क्योंकि आज के संतों में से तो आयातित परफ्यूम की खुशबू आती है और शायद इसीलिए सभी संतों का समागम कभी अयोध्या तो कभी अनंत राधिका के विवाह समारोह में होता है।।
जिन साधकों ने नियमित अभ्यास और ईश्वर कृपा से अपनी भूख, प्यास और निद्रा को साध लिया है, उनके लिए क्या जागना और सोना। वे बिना किसी अलार्म के अमृत काल में सुबह ३बजे जाग सकते हैं। लेकिन जो कामकाजी मेहनती साधक हैं, वे संयम, संतुलित भोजन और पर्याप्त नींद के पश्चात् ब्राह्म मुहूर्त में सुबह ५ बजे भी उठकर समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
प्रकृति से जुड़ना ही ईश्वर से जुड़ना है। एक पक्षी तक पौ फटते ही जाग जाता है और अपने कर्म में लग जाता है। पुरवा सुहानी और खिलते फूलों की खुशबू के साथ ही तो मंदिरों में पूजा आरती और गुरुद्वारे में अरदास होती है। वही समय संगीत की रियाज और नमाज का होता है। प्रकृति का जगना ही एक नई सुबह की दस्तक है। एक नया शुभ संकल्प, एक नया विचार।।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
आज गुरु पूर्णिमा है, किसी भी शुभ संकल्प के लिए आज से बढ़िया कोई दिन नहीं। प्रश्न सिर्फ जागने का है, अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर का मार्ग ही सतगुरु का मार्ग है ;
गु से अंधकार मिट जावे
रु शब्दै प्रकाश फैलावे
मनमुख से गुरुमुख होना ही सच्ची साधना है। ईश्वर तत्व ही गुरु तत्व है और उसे ही आत्म गुरु भी कहा गया है। जिन खोजां तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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