श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आया साजन झूम के…“।)
अभी अभी # 444 ⇒ आया साजन झूम के… श्री प्रदीप शर्मा
क्या बात है, क्या इस बार सावन के महीने में यह उदासी क्यों, क्या इस बार सावन नहीं आया। नहीं आया तो है, लेकिन हर बार की तरह उमड़ घुमड़कर, जोर शोर से और झूमकर नहीं आया। बड़ा परेशान सा, उमस और पसीने से नहाया सा लगता है। उधर कुछ पसीने की बूंदें टपकती हैं, और लोग उसे ही सावन की बूंदाबांदी समझ लेते है और सावन के गीत गाना शुरू कर देते हैं।
क्या बात करते हो, कहीं कहीं तो सड़कों पर नाव चल रही है, लोग झूमकर नहीं, तैरकर सड़क पार कर रहे हैं, कहीं बादल फट रहे हैं और कहीं धरती फट रही है। वहां तो सावन, साजन की तरह नशे में धुत होकर झूम रहा है और इधर आपको सावन से इसलिए शिकायत है, कि सावन झूम नहीं रहा है। ।
ये सावन और साजन की भी गजब की जुगलबंदी है, उधर सावन झूमता है, इधर साजन नशे में झूमता है। सजनी को अगर सावन और साजन एक साथ मिल जाए, तो वह भी झूम उठती है ;
पड़ गए झूले
सावन रुत आई रे
सीने में हूक उठे
अल्लाह दुहाई रे …
मौसम की मस्ती का मज़ा कुछ अलग ही होता है। सावन का महीना आस और प्यास का है। अगर इस मौसम में भी सावन नहीं झूमे, तो कब झूमेगा। सूरज ने निकलना छोड़ दिया है, यानी उसने सावन के लिए आसमान साफ कर दिया है। लेकिन सावन के बादलों की स्थिति ऐसी है, मेरे साथी खाली जाम। वह कैसे छलकाए जाम। बेचारा प्यासा सावन।
आजकल बच्चा बच्चा जानता है, सावन आग लगाता भी है और फिर बुझाता भी वही है। उधर विरहिणी के नैना सावन भादो हो रहे हैं, और इधर सावन सूखा जा रहा है। सावन तो झूम नहीं रहा है, और उधर साजन झूमते हुए, यह गीत गाते चले आ रहे हैं ;
सावन के महीने में
एक आग सी सीने में
लगती है तो पी लेता हूं
दो चार घड़ी जी लेता हूं …
हे इंद्रदेव, सावन की आग बुझाओ, सबको दो घड़ी जी लेने दो, अमृत वर्षा करो, सबको पीकर तृप्त हो लेने दो। सजनी सावन की झड़ी में झूमने लगे, और साजन का नशा हिरन हो जाए और वह भी कह उठे,
आया सावन झूम के। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈