श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “छोटी बहन…“।)
अभी अभी # 450 ⇒ छोटी बहन… श्री प्रदीप शर्मा
सन् १९५९ में निर्देशक एल.वी.प्रसाद ने एक फिल्म बनाई थी, छोटी बहन, जिसके मुख्य कलाकार थे, बलराज साहनी, नंदा, रहमान, महमूद और शुभा खोटे। इस फिल्म को पांच फिल्मफेयर पुरस्कार मिले थे ;
१)सर्वश्रेष्ठ फिल्म,
२) सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, प्रसाद,
३) सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता महमूद
४) सर्वश्रेष्ठ संगीतकार शंकर जयकिशन
और सबसे ऊपर,
५) सर्वश्रेष्ठ गायिका लता मंगेशकर ;
और वह गीत था, भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना। कहने की आवश्यकता नहीं, ऐसा गीत केवल शैलेंद्र ही लिख सकते थे, और लता से छोटी बहन उस समय शायद संगीत की दुनिया में कोई दूसरी मौजूद थी ही नहीं। लता जी को आज भी लता दीदी यूं ही नहीं कहते।
आज से ६५ वर्ष पुराना गीत अगर आप आज भी सुनें, तो लगता है, यह गीत किसी छोटी बहन द्वारा ही गाया गया है। मेरी छोटी बहनों की उम्र आज ६० वर्ष से ऊपर हो गई, लेकिन इस गीत की तरह, मेरे लिए आज भी वे उतनी ही छोटी और प्यारी भी हैं। ।
आज जब सभी पारिवारिक रिश्ते दम तोड़ते नजर आते हैं, भाई बहन का रिश्ता आज भी क्यों आंखों भिगो देता है, खास कर तब, जब रेडियो पर आज भी गीत बजता है। किसी को बहन का होना अगर खुशी के आंसू लाता है, तो किसी के आंखों में बहन के खोने के आंसू भी आज उमड़ पड़ते हैं। शैलेन्द्र के भाव देखिए ;
ये दिन ये त्यौहार ख़ुशी का
पावन जैसे नीर नदी का
भाई के उजले माथे पे
बहन लगाए मंगल टीका
झूमे ये सावन सुहाना, सुहाना।
बांध के हमने रेशम डोरी
तुम से वो उम्मीद है जोड़ी
नाज़ुक है जो साँस के जैसी
पर जीवन भर जाए ना तोड़ी
जाने ये सारा ज़माना ज़माना। ।
शायद वो सावन भी आए
जो बहना का रंग ना लाए
बहन पराए देश बसी हो
अगर वो तुम तक पहुँच ना पाए
याद का दीपक जलाना, जलाना। ।
भैया मेरे …
लेकिन समय कितना बदल गया है। बच्चे दो या तीन ही अच्छे, से हम दो हमारे दो, तक तो ठीक था, फिर सिंगल चाइल्ड का जमाना आ गया। भाई बहन को तरस रहा है, और बहन भाई को। माता पिता के जाने के बाद एक ही रिश्ता भाई बहन का तो होता है, जो रिश्ता कहला सकता है।
सुख और दुख का हिंडोला है यह जीवन। हवा के साथ पुरानी यादें भी आएंगी, रिश्ते याद आएंगे।
अगर किसी बहन के भाई नहीं है, तो वह सबके पालनहार कृष्ण को तो राखी बांध ही सकती है, लेकिन भाई को भी तो किसी बहन के कांधे की आस होती है। आज तो बस एक ही शब्द कानों में गूंज रहा है;
भैया मेरे…!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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