श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जोड़ी गीतकार और… संगीतकारों की…“।)
अभी अभी # 453 ⇒ जोड़ी गीतकार और… संगीतकारों की… श्री प्रदीप शर्मा
जब कभी हिंदी सिनेमा संगीत की स्वर्ण युग की बात होती है इसका श्रेय पचास और साठ के दशक को जाता है। लगभग उसी दौर में संगीतकार शंकर जयकिशन की अपनी एक जगह थी। उनके संगीत ने सिनेमा संगीत को फेमस किया। उनके पहले संगीत इतना पॉप्युलर नहीं था। शंकर जयकिशन ने संगीत को आसान कर दिया। मगर यह सुनने में जितना आसान लगता है उसका निर्माण उतना ही कठिन होता है। कैसे बनाते थे शंकर-जयकिशन संगीत…
शंकर गंभीर थे और जयकिशन रोमांटिक
वो ज्यादातर हार्मोनियम और प्यानो पर अपने संगीत का निर्माण करते थे। जयकिशन जी रोमांटिक स्वभाव के थे और उन्हें कपडों का बडा शौक था। थीम सॉन्ग और शीर्षक गीत, उनकी फिल्म संगीत को बडी देन है। ऐसा कहा जाता था कि उन्हें स्वरलेखन (नोटेशन) लिखना नही आता था, इसके बावजूद वो सफल और लोकप्रिय रहे। पहली फिल्म “बरसात” से ही उन्होंने अपनी जगह बना ली थी। 10 अप्रैल 1950 को मुंबई के इम्पीरियल सिनेमागृह मे प्रदर्शित हुई इस फिल्म की अपार सफलता ने उनका विश्वास बढाया। आज भी इस फिल्म के गाने, हवा में उडता जाए, जिया बेकरार है, मुझे किसी से प्यार हो गया, अब मेरा कौन सहारा, और बरसात मे हमसे मिले तुम (सभी लता मंगेशकर) सुनने में आनंद देते हैं।
अपने गॉडफादर राज कपूर के लिए वे कुछ हटकर संगीत बनाते थे। शंकर को आंध्र के लोक संगीत की अच्छी जानकारी थी। श्री 420 के वक्त उन्होंने रमय्या, वस्तावैया धुन राजसाहब को सुनाई जो उन्हें बहुत पसंद आई।
फिल्म जिस देश में गंगा बहती है के गीत आ अब लौट चले की रेकॉर्डिंग के समय फेमस स्टुडिओ मे इतने वादक हो गये की कईंयो को बैठने के लिए जगह नही थी। इतने वादक होने के बावजूद रेकॉर्डिंग मे कोई गडबडी नहीं हुई। भैरवी उन दोनो का पसंदीदा राग था। बोल रे कठपुतली (कठपुतली) राजा की आयेगी बारात (आह) सुनो छोटी सी दुनिया की (सीमा) तुम्हें और क्या दूं मैं (आई मिलन की बेला) आदि गीतों की रचना इसी राग की थी। कभी नील गगन की छाँव मे (आम्रपाली) केतकी गुलाब (बसंत बहार) झनक झनक तोरी बाजे पायलिया (मेरे हुजूर) ऐसे कुछ शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीतों मे सफलता पाई।
शंकर जयकिशन और उनके संगीत के बारे में जितना भी कहा जाए उतना कम ही है। सिनेमा संगीत का एक लंबा, महत्वपूर्ण और लोकप्रिय संगीत शंकर जयकिशन की देन है। भारतीय फिल्म संगीत को अमर बनाने में गीत और संगीत का बड़ा योगदान है। पहले गीत लिखा जाता है, फिर उसकी धुन बनाई जाती है और उसके बाद गायक उसे अपना सुर प्रदान करता है। श्रोता के पास जब यह गीत पहुंचता है तो उस पर गीत, संगीत और गायक, तीनों का मिला जुला असर पड़ता है, और उसकी आत्मा तृप्त हो जाती है।
जो लोग केवल आम खाते हैं, वे पेड़ नहीं गिनते। हमें तो स्वादिष्ट सब्जी से मतलब है, फिर भले ही वह आलू की हो अथवा गोभी की, अथवा दोनों मिक्स। किसने बनाई, क्या क्या मसाले डाले, इससे हमें क्या। गीत, धुन और संगीत का भी यही हाल है। लेकिन जो संगीत के रसिक होते हैं, उनकी तो बात कुछ और ही होती है।।
हम यहां सिर्फ संगीतकार और गीतकार जोड़ी की ही चर्चा करेंगे। हमारी आज की संगीतकार जोड़ी है, शंकर जयकिशन अब जरा इनके साथ वाले गीतकार की जोड़ी पर भी गौर फरमाइए। गीतकार जोड़ी हैं शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी।।
फिल्म का गीतकार तो एक ही हो सकता है, लेकिन संगीत का संयोजन तो दो संगीतकार मिलकर भी कर सकते हैं। याद कीजिए संगीतकार हुस्नलाल भगतराम और कल्याण जी आनंद जी की जोड़ी को।
हर संगीतकार के अपनी पसंद के गीतकार होते हैं। राजकपूर की फिल्म बरसात में शंकर जयकिशन का संगीत था और गीतकार थे शैलेंद्र और हसरत जयपुरी। फिल्म मेरा नाम जोकर तक राजकपूर की फिल्मों में शंकर जयकिशन ने संगीत दिया और शैलेंद्र और हसरत जयपुरी ने गीत लिखे।।
अब इसी जोड़ी की जरा धमा चौकड़ी भी देखिए, जिसमें शामिल हैं गीतकार शैलेन्द्र, संगीतकार शंकर, गायक मुकेश और द ओनली शोमैन राजकपूर। फिल्म आवारा, बरसात, श्री ४२०, चोरी चोरी, अनाड़ी, जिस देश में गंगा बहती है, संगम और मेरा नाम जोकर तक इनका जलवा कायम रहा।
सजन रे झूठ मत बोलो, शैलेंद्र की तीसरी कसम किसे याद नहीं। शैलेंद्र के गीतों में दर्द था, सादगी थी, गांव का ठेठ भोलापन था ;
सब कुछ सीखा हमने,
ना सीखी होशियारी।
सच है दुनिया वालों
कि हम हैं अनाड़ी।।
इसी जोड़ी के दूसरे गीतकार थे, हसरत जयपुरी। राजकपूर के अलावा सभी अभिनेताओं के लिए हसरत जयपुरी ने जिन गीतों की रचना की, उनके लिए केवल एक गायक मोहम्मद रफी ही पर्याप्त थे। शम्मी कपूर की फिल्में जंगली, जानवर, प्रोफेसर, बदतमीज, प्रिंस, पगला कहीं का, एन इवनिंग इन पेरिस, अंदाज़ और ब्रह्मचारी तक एक ही संगीतकार और एक ही आवाज मोहम्मद रफी।
कोई फर्क नहीं पड़ता फिर वो आरजू, मेरे महबूब, सूरज और आई मिलन की बेला के राजेंद्र कुमार हों, अथवा लव इन टोकियो के जॉय मुखर्जी।
1940 में जयपुरी बॉम्बे (अब मुंबई) आ गए और बस कंडक्टर के रूप में काम करना शुरू कर दिया, जहाँ उन्हें ग्यारह रुपये मासिक वेतन मिलता था। वह मुशायरों या कविता पाठ संगोष्ठियों में भाग लेते थे। एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर की नज़र जयपुरी पर पड़ी और उन्होंने अपने बेटे राज कपूर से उनकी सिफारिश की। राज कपूर शंकर-जयकिशन के साथ एक संगीतमय प्रेम कहानी, बरसात (1949) की योजना बना रहे थे। जयपुरी ने फिल्म के लिए अपना पहला रिकॉर्ड किया हुआ गाना, जिया बेकरार है लिखा। उनका दूसरा गाना (और पहला युगल गीत) छोड़ गए बालम था।।
शैलेंद्र के साथ, जयपुरी ने 1971 तक राज कपूर की सभी फिल्मों के लिए गीत लिखे। जिस फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी होंगे, उस फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन का ही होगा। जयकिशन और शंकर की इस जोड़ी ने लगभग १७० फिल्मों में संगीत दिया है जिसमें केवल लता मंगेशकर के ही गाए हुए ४६६ गीत हैं।
जीना यहां मरना यहां हो अथवा सजन रे झूठ मत बोलो, तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे। जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग संग तुम भी गुनगुनाओगे। इतनी छोटी दास्तान नहीं है फिल्म संगीत के इतिहास की इस ऐतिहासिक धमा चौकड़ी की, जहां धुनों के जादूगर अगर शंकर और जयकिशन हैं, तो दर्द भरे, संजीदा, दार्शनिक और फड़कते गीतों के लिए महाकवि शैलेंद्र और शायर हसरत जयपुरी मौजूद हैं।।
अभी अभी इतना ही, एक और जोड़ी संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और गीतकार जोड़ी आनंद बख्शी और मजरूह सुल्तानपुरी पर फिर कभी..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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