श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हमारे पास भी भेजा है…“।)
अभी अभी # 454 ⇒ हमारे पास भी भेजा है… श्री प्रदीप शर्मा
खुदा जब हुस्न देता है तो नज़ाकत आ ही जाती है, लेकिन अगर वह साथ में उसे थोड़ी सी अगर अक्ल भी दे दे, तो कयामत आ जाती है। इसलिए वह एक इंसान को या तो हुस्न देता है, या फिर अक्ल। Have you ever seen a beauty with brain ?
बचपन में हम दिखने में ठीकठाक ही थे, निष्छल हँसी और मुस्कान अगर बच्चों की पहचान है तो हुस्न किसी हसीना की पहचान है। जो कभी हँसी ही नहीं, वह काहे की हसीना। हम भले ही पढाई में होशियार रहे हों, लेकिन गणित की कक्षा में हमारे चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती थी और गणित के गुरु जी तुरंत हमारा चेहरा भांप लिया करते थे और कहते थे, जब ऊपर वाला अक्ल बांट रहा था, तब तुम कहां थे।।
अजीब गणित है अक्ल का भी, यह दुनिया गणित वालों को अक्लमंद मानती है, और शेष को मंदबुद्धि।
वैसे हम आपको बता दें, हमारे मस्तिष्क में दिमाग भी है, और वह बहुत चलता भी है। मैं भी मुंह में जबान रखता हूं, और मेरे पास भी भेजा है और वह भी उस ऊपर वाले ने ही भेजा है।
अब ऐसा तो नहीं हो सकता कि हमारे पास भेजा तो हो, लेकिन उसमें अक्ल नहीं हो। हम तो उस देने वाले पर यह भी इल्जाम नहीं लगा सकते कि उसने हमारे भेजे में अक्ल भरी ही नहीं, क्योंकि समझदारी तो हममें कूट कूटकर भरी है। हमें आज भी याद है, वह बचपन की कहावत ;
छड़ी पड़े छमछम
विद्या आए झम झम…
जिसे हम ब्रेन, दिमाग, मस्तिष्क अथवा भेजा कहते हैं, आखिर वह है क्या, हमारे शरीर रूपी यंत्र का कोई हार्डवेयर अथवा सॉफ्टवेयर। यह कैसा शरीर का सॉफ्टवेयर, अगर ब्रेन डेड तो सब डेड, फिर मम्मी हो या डेड।
इससे तो यही साबित होता है, कि उस ऊपर वाले ने हमें भी वही भेजा भेजा है, जो सबको भेजा है, एक रेडियो की तरह उसकी ट्यूनिंग भी चेक की होगी, टेक्नोलॉजी में आज जो वैज्ञानिक दिमाग लगा रहे हैं, उसका भी कॉपीराइट उसी के पास है। अगर उसने ऊपर से स्विच ऑफ कर दिया तो सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का गणित भी भूल जाओगे।।
अगर बचपन में गणित हमारे भेजे में नहीं घुसा, तो हमें रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा। फर्क तो उनको पड़ा जिनको जब जीवन का गणित बिगड़ता नजर आया, तो उन्होंने अपने भेजे में ही गोली मार ली।
भय्यू महाराज जैसे संत और कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक केवल जिंदगी का गणित बिगड़ने से अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं।
असली गणित जीवन का गणित है, का करि के, पुनि भाग कर, नहीं ! यह बात हमारे भेजे में घर कर चुकी है, इसलिए भेजे को नहीं, गोली मारो ऐसे गणित को।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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