श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “डिनर के पहले… डिनर, के बाद“।)
अभी अभी # 457 ⇒ डिनर के पहले… डिनर, के बाद श्री प्रदीप शर्मा
Startar & dessert
जिसे हम साधारण भाषा में खाना अथवा भोजन कहते हैं, अंग्रेजों ने उसका समयबद्ध तरीके से नामकरण किया है, ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर, जिसे हम साधारण भाषा में सुबह का चाय नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना कहते हैं। आकर्षक भाषा में इसे ही अल्पाहार, स्वल्पाहार एवं रात्रिभोज कहते हैं।
रात भर भूखे रहे, सुबह जाकर उपवास तोड़ा, इसलिए वह अंग्रेजों का ब्रेकफास्ट हुआ। देहात में तो कुल्ला, दातून के बाद ही कुछ कलेवा कर आदमी खेत खलिहान अथवा काम धंधे रोजगार पर निकल जाता था। हां एक शहरी जरूर ब्रेड बटर, पोहे, इडली, अथवा बाजार से लाए जलेबी, समोसा अथवा कचोरी खाकर स्कूल, दफ्तर अथवा कामकाज पर निकल जाता था।।
अंग्रेज जितने समय के पाबंद होते थे उतने ही खाने के भी। उनके हाथ में ही नहीं, दिमाग में भी घड़ी लगी रहती थी। ब्रेकफास्ट टाइम, लंच टाइम, टी टाइम और रात का डिनर भी घड़ी से ही होता था।
समय के साथ घर घर में डाइनिंग टेबल भी पसर गई। उसी पर सुबह का नाश्ता, बच्चों का होमवर्क, और सब्जी सुधारना भी हो जाता था। अब दिन भर डाइनिंग टेबल का अचार डालने से तो रहे, बहू के दहेज में अलमारी और ड्रेसिंग टेबल के साथ घर में डाइनिंग टेबल भी चली आई। रात को सब मिल जुलकर इसी पर डिनर भी कर लेते हैं।।
जो दिन में संभव नहीं हो, उसे रात का डिनर कहते हैं। पूरे सप्ताह काम ही काम, बस वीकेंड में ही थोड़ा आराम मिलता है। टीवी, मोबाइल और सोशल मीडिया ने पुराने सिनेमाघरों का सत्यानाश कर दिया है। सब फिल्में हॉट स्टार और नेट फ्लिक्स पर देख लो।
इसके बजाय क्यों ना रात का खाना बाहर ही खाया जाए।
पुराने जमाने के सिनेमाघरों की तरह आजकल खाने पीने की होटलें भी हाउसफुल रहने लग गई हैं, घंटों इंतजार करने के बाद अपना नंबर आता है।
अच्छी होटलों में तो दरवाजे पर सजा धजा दरबान सलाम भी करता है।।
होटलों का डिनर तो स्टार्ट ही स्टार्टर से होता है। पापड़, सलाद और सूप के अलावा चिली पनीर के कुछ टुकड़े आपकी भूख को बढ़ाने का काम करते हैं। स्प्राउट्स यानी अंकुरित अनाज भला क्यों पीछे रहे। यह अलग बात है कि हमारे जैसे लोगों का तो स्टार्टर से ही पेट भर जाता है। फिर मुख्य भोजन, जिसे मेन कोर्स कहते हैं, वह सर्व होता है।
बच्चों की दुनिया अलग ही होती है। उनको तो सिर्फ सिजलर, पास्ता, पिज्जा मंचूरियन से मतलब होता है। वैसे भी भारतीय भोजन में चाइनीज फूड का अतिक्रमण हो ही चुका है।।
कोई भी डिनर तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कुछ डेजर्ट ना मंगवा लिए जाएं। जो मीठे के शौकीन नहीं हैं, वे आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक अथवा फ्रूट कस्टर्ड से डिनर का समापन करते हैं। भरपेट भोजन और वह भी पूरी तरह से कैशलैस।
हुआ ना यह भी एक तरह का मुफ्त डिनर ही न..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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