श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “तकिया, सिरहाना, करवट…“।)
अभी अभी # 463 ⇒ तकिया, सिरहाना, करवट… श्री प्रदीप शर्मा
नींद और भूख हमारे स्वस्थ जीवन का आधार है। हमारा जीवन चक्र भूख और नींद के बिना अधूरा है। भरपेट भोजन और चैन की नींद हमारी दिनचर्चा का अभिन्न अंग बन चुके हैं। भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता नींद क्या आएगी।
हम रोज सोते हैं और रोज उठते हैं, एक रोज अगर थोड़ी सी नींद पूरी नहीं हुई, तो पूरा दिन बिगड़ जाता है। यह शरीर रोज थकता है, और इसे रोज आराम की जरूरत होती है। जितनी गहरी नींद, इंसान उतना ही अधिक स्वस्थ।।
जब हम सोते हैं, तो बहुत जल्द ही हमारी चेतनता गायब हो जाती है, बस सांस चलती रहती है, और घोड़े बिकते रहते हैं। नींद में खलल हमें पसंद नहीं।
हम नींद में इतने असहाय हो जाते हैं, कि सपनों को भी आने से नहीं रोक पाते। इधर चेतन मन सोया, और उधर अवचेतन मन का संसार शुरू। वैसे तो जगत ही मिथ्या है, उस मिथ्या में भी एक और भ्रम। कन्फ्यूज हैं हम।
जो नींद बिना प्रयास के, इतनी आसानी से आ जाती है, उसकी सुविधा के लिए हम पलंग, बिस्तर, रजाई गद्दा और तकिये का भी इंतजाम करते हैं। उसे शयनकक्ष का नाम देते हैं। जब कि एक बार नींद आ जाने के पश्चात् हमें पता ही नहीं होता, हम किस दुनिया में हैं।।
नींद तो गरीब को भी आती है, और झोपड़ी में भी अच्छी आती है। एक थका हुआ इंसान तो कहीं भी ऊंघने लगता है, फिर चाहे वह क्लास रूम हो अथवा किसी देश की संसद। बस ट्रेन में तो लोग खड़े खड़े भी सोते देखे गए हैं। एक हास्य कलाकार हुए हैं केष्टो मुखर्जी जो अपने अभिनय से आपकी नींद भगा दे। वैसे भी नींद का नशा किसी शराब के नशे से कम नहीं होता।
नींद आराम है, विश्राम है। आराम और विश्राम के भी अपने अपने कम्फर्ट ज़ोन होते हैं, जिन्हें आप आरामदायक स्थिति भी कह सकते हैं। बच्चों के लिए झूला, जिसमें उसे ऐसा लगे, जैसे कोई उसे झूला देकर सुला रहा है।
लड़कियों की नींद के संसार में एक राजकुमार सबसे पहले आता है।।
हमने हमारे समय में टेडी बियर का नाम नहीं सुना था, लेकिन बच्चे खिलौनों के साथ खेलते खेलते आसानी से सो जाते थे।
आज की जीती जागती गुड़ियाओं के घर टेडीज़ से भरे होते हैं। हर बच्चे का एक प्यारा टेडी होता है।
जो नींद से करे प्यार, वो तकिये से कैसे करे इंकार। सोने से पहले, सबसे पहले तकिया ही प्यारा होता है।
सोने के बाद वह कहां पड़ा होता है, कोई नहीं जानता।
हम जहां सिर रखकर सोते हैं, वह सिरहाना कहलाता है। लोग सिरहाने क्या क्या रखकर सोते हैं, घड़ी, चश्मा, विक्स और पैन बॉम तो आम है ही।
पहले जहां सिरहाने किताब होती थी, वहां आजकल मोबाइल ने अतिक्रमण कर लिया है।।
गहरी नींद में, और चैन से सोने के बावजूद भी हमारी हरकतें चालू रहती हैं। रात को सोये थे, तो बिल्कुल सीधे, पीठ के बल। रात में ना जाने कब ऊंट की तरह किस ओर करवट बदल ली, पता ही नहीं चला। हमारा चेतना नींद में भी हमारे शरीर का पूरा खयाल रखती है। अगर मच्छर काटेंगे तो शरीर उठकर ऑल आउट लगा लेगा। प्यास और पेशाब भी कहीं रोके रुकते हैं, कितनी भी खूबसूरत सपना हो, बीच में ही तोड़ना पड़ता है।
लेकिन यह निंदिया इतनी सीधी सादी और भोली भाली भी नहीं। जब कोई आंखों में बस जाता है, तो नींद उड़ जाती है। दुख, तनाव और अवसाद में कैसी नींद और भूख प्यास। महलों और पंचासितारा शयनकक्षों में नींद का पता नहीं, और इधर एक मेहनतकश मजदूर अपनी बाहों का तकिया बनाए जमीन पर गहरी नींद में सो रहा है।।
बच्चों की आंखों में कल के सपने होते हैं। माता पिता रात रात भर जाग जागकर बच्चों को मीठी नींद सुलाते हैं ;
मैं जागूं तुम सो जाओ
सुख सपनों में खो जाओ।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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