श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “रविवार अवकाश…“।)
अभी अभी # 471 ⇒ रविवार अवकाश… श्री प्रदीप शर्मा
Sunday Closed
हमारी पृथ्वी सूर्य का ही अंश है, इसलिए हम सूर्य से अधिक सनातन तो नहीं हो सकते, पृथ्वी तो फिर भी एक ही है, लेकिन इस ब्रह्मांड में कितने सूर्य हैं, इसका हमें पता नहीं। केवल एक दिव्य भास्कर, आदित्यनाथ हैं, जिसे सुना है, हमारे बाल हनुमान ने कभी गेंद समझकर निगल लिया था।
यह भी सत्य सनातन है कि हममें से अगर कुछ सूर्यवंशी हैं, तो कुछ चंद्रवंशी, लेकिन लोकतंत्र में आज सभी रविवार की छुट्टी यानी सन्डे के नाम पर वीकेंड मना रहे हैं, और चैन की बंसी बजा रहे हैं। ।
यह संडे अर्थात् रविवार की छुट्टी कितनी पुरानी अथवा सनातन है, इसके बारे में श्रुति, स्मृति और पुराण सभी मौन हैं। हां सूर्यनारायण हमारे आराध्य अवश्य हैं, शक्ति और प्रकाश के पुंज हैं, वे हमें कर्म की शिक्षा देते हैं, आराम और विश्राम की नहीं। उसके लिए सोलह कलाओं से युक्त हमारे चंद्र देव नभ में विराजमान हैं।
संध्या होते ही पक्षी तक अपने घोंसलों में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। निशा निमंत्रण मिलते ही इंसान भी रजनी के साथ सुख से रात्रि व्यतीत करता है और सुबह अपने आपको ताजा महसूस करता है।
आज की बाल नरेंद्र की रिसर्च यह बताती है कि रविवार यानी संडे कभी हमारा सप्ताहिक अवकाश का दिन रहा ही नहीं। यह स्पष्ट रूप से अंग्रेजों की देन है। हमारे पास इससे असहमत होने का कोई कारण नहीं, क्योंकि रवि का इतिहास तो हमारे पास है, लेकिन रविवार की छुट्टी का नहीं। अंग्रेजों का क्या है, ठंडे प्रदेश के लोग हैं, जिस दिन सूरज उगा, उसी दिन सन्डे। ।
कभी हमारा भी सूरज उगता था, नहा धोकर उत्साहपूर्वक सोमवार को दफ़्तर जाते थे, लेकिन हमारी निगाह शनिवार पर ही लगी रहती थी, शनिवार हॉफ डे और सन्डे की छुट्टी। लेकिन रिटायरमेंट के बाद अब सन्डे की छुट्टी का वह मज़ा नहीं रहा। सुबह होती है, शाम होती है, जिंदगी यूं ही आराम से गुजर जाती है।
खेती किसानी में कोई अवकाश नहीं होता, पशु पक्षियों को हमने कभी साप्ताहिक अवकाश पर जाते नहीं देखा। दिवाकर यानी आदित्य ने कभी संडे ऑफ नहीं लिया। हमने भोजन से कभी साप्ताहिक अवकाश नहीं लिया। दिल की धड़कन और रात दिन चलती सांसें अगर अवकाश मांग ले, तो हमारी तो छुट्टी ही हो जाए। ।
हमने तो जीवन में बस सावधान और विश्राम का सबक ही सीखा है, सुबह होते ही सावधान ;
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत..
कठोपनिषद्
और
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈