श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मित्र को पत्र।)

?अभी अभी # 473 ⇒ मित्र को पत्र? श्री प्रदीप शर्मा  ?

याद नहीं आता पिछले 30 वर्षों में मैने किसी मित्र को पत्र लिखा हो। स्कूल के दिनों में हिंदी के आचार्य व्याकरण के अलावा दीपावली और गाय पर निबंध और मित्र को पत्र अवश्य लिखवाते थे। कॉलेज आते-आते कुछ साथी प्रेम पत्र लिखना भी सीख गए और हमारे जैसे लोग संपादक के नाम पत्र ही लिखते रह गए।

इस दिल के टुकड़े हजार हुए कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा। यार दोस्त भी दिल के टुकड़े ही तो होते हैं। कबीर साहब ने शायद दोस्तों के बारे में ही यह कहा होगा ;

पत्ता टूटा डार से

ले गई पवन उड़ाय।

अब के बिछड़े कब मिलेंगे

दूर पड़ेंगे जाय।।

जिन दोस्तों का पता था उनसे कुछ अर्से तक तो पत्र व्यवहार होता रहा, टेलीफोन का जमाना तो वह था नहीं, बस खतों के जरिए ही दिल की प्यास बुझा ली जाती थी।

खतों का सिलसिला हमेशा दो तरफा होता है एकांगी नहीं, अगर एक भी मित्र ख़त का जवाब नहीं देता तो वह कड़ी आगे जाकर टूट जाती है। मेरे बैंक के एक अंतरंग मित्र और सहयोगी जब ट्रांसफर होकर अपने होम टाउन चले गए तो उनसे पत्र व्यवहार का सिलसिला शुरू हुआ। पहल उन्होंने ही की पोस्टकार्ड के जरिए। बड़े भावुक मित्र थे और निहायत शरीफ इंसान। पंकज मलिक और के सी डे के गीत इतनी तन्मयता से गाते थे कि उनके लिए जगमोहन के ये शब्द सार्थक सिद्ध होते प्रतीत होते हैं ;

दिल को है तुमसे प्यार क्यों

ये न बता सकूँगा मैं

ये न बता सकूंगा मैं ….

कहने का आशय यही कि उन्हें मुझसे आत्मीय प्रेम था। मैं कभी उनके खतों का जवाब देता कभी नहीं देता, कारण एकमात्र आलस्य। उन्होंने जवाबी पोस्ट कार्ड भेजना शुरू कर दिया लेकिन फिर भी मैं आदत से मजबूर उस पत्र व्यवहार के सिलसिले को जारी नहीं रख पाया।।

आज फोन है मोबाइल है इंटरनेट है। पुराने दोस्तों से संपर्क बहुत आसान है फिर भी वह बात नहीं जो पहले थी। उम्र का तकाजा कहें अथवा मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। ऐसी स्थिति में एक आशा की किरण केवल फेसबुक के आभासी मित्रों में ही नजर आती है। मित्रों की सूची लंबी है शुभचिंतकों की भी कमी नहीं। दिल बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल अच्छा है।

आत्मीय प्रेम और स्वस्थ संवाद ही आज की जरूरत है। जितने दूर उतने पास, और जो जितना करीब है वह उतना ही दूर नजर आता है। लोग कहते हैं ताली दो हाथ से बजती है, काश ताली बजाते ही, अलादीन के चिराग की तरह, दोस्त हाजिर हो जाते। जो जहां जितना है, पर्याप्त है। फिल्मी ही सही, लेकिन अभिव्यक्ति कितनी सही है ;

एहसान मेरे दिल पे

तुम्हारा है दोस्तों

ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों …!!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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