श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शाही बनाम राजसी।)

?अभी अभी # 475 ⇒ शाही बनाम राजसी… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कोई शेख पीर, शेक्सपीयर बनकर कह गया है, नाम में क्या रखा है, गुलाब जल कहें अथवा देशी शराब की दुकान पर मिलने वाली मौसम्मी, और संतरा परिवार की महारानी, राजस्थान की महनसर शाही गुलाब। सोमरस और कंट्री लिकर के रहते फॉरेन लिकर का गुणगान हमें कतई पसंद नहीं।

हम नहीं मानते, नाम में क्या रखा है। मुगल राज, ब्रिटिश राज और स्वराज में जमीन आसमान का अंतर है। जो कभी जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, और हिन्दुस्तान रहा हो, उसे हम इंडिया कैसे मान लें। अंग्रेजों ने इंडिया का बंटवारा किया, भारत का नहीं, सनातन भारत तब भी एक ही था, आज भी एक है, और सदा सर्वदा के लिए अखंड भारत ही रहेगा।।

होते होंगे कभी एक सिक्के के दो पहलू, जिसकी एक और इंडिया और दूसरी ओर भारत लिखा रहता था, अब सिक्के में हेड और टेल नहीं रहेगा, दोनों ओर भारत ही अंकित रहेगा। चित भी हमारी और पट भी हमारी।

जिस तरह कुछ शब्दों से अंग्रेजियत की बू आती है, उसी तरह कुछ शब्द ऐसे हैं, जो हमें मुगलों की याद दिलाते हैं। हम ऐसी सराय, शहर, सड़क और मोहल्लों के नाम तक बदल चुके हैं, जो हमें हमारे काले अतीत की याद दिलाता है। हमें सिर्फ अपने स्वर्णिम अतीत से ही प्रेरणा लेना है, और बीती ताहि बिसार के, आगे की सुध लेना है।।

कई बरसों से एक शब्द हमारी आंखों में खटक रहा था, लेकिन मरदूद, जबान पर भी चढ़ा था। इंसान हो अथवा भोजन, दोनों में तीन गुण होते हैं, सत, रज और तम, जिसे हम सात्विक, राजसी और तामसिक कहते हैं। ईश्वर सर्वगुण संपन्न होते हुए भी राजसी गुण प्रधान है, क्योंकि वह सभी ऐश्वर्यों का स्वामी और प्रदाता है।

राजसी सुख, और राजसी भोजन की चाह किसे नहीं होती।

लेकिन हमारी गुलाम जबान देखिए, आज भी शाही पर ही अटकी हुई है। महाकाल की भी शाही सवारी और कुंभ का भी शाही स्नान। शाही ठाठबाट और शाही भोजन। चाइनीज फूड की तरह जिधर देखो उधर शाही का ही बोलबाला, शाही कोरमा और शाही टिक्का।।

शाही व्यंजनों की बात करें तो, ऐसे व्यंजन हैं जो पहले राजघरानों में पकाए गए थे, लेकिन आज हर कोई उन्हें खा सकता है।

शाही टुकड़ा अब राजसी टुकड़ा कहलाएगा, और शाही कबाब राजसी कबाब। क्या होता है यह शाही पहनावा, क्या यह राजसी नहीं हो सकता।

सरकार हो या अफसर मंत्री और अदानी अंबानी जैसे उद्योगपति, संत, महात्मा, मंडलेश्वर हों अथवा शंकराचार्य क्या किसी के राजसी ठाठ में आपको कोई कमी नज़र आती है, अगर नहीं, तो शाही को मारिए गोली और राजसी से ही काम चलाइए। हमने एक तीर से दो शिकार कर लिए, पहले सिक्के और संविधान से इंडिया को हटाया और भारत को प्रतिष्ठित किया और फिर हमारे अपने अंदाज़ को भी शाही से राजसी किया। आज ही घर में राजसी पालक पनीर बनेगा, राजसी अंदाज़ में। आज की राजसी दावत में आपका स्वागत है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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