श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “रुख और मुख…“।)
अभी अभी # 477 ⇒ रुख और मुख… श्री प्रदीप शर्मा
रुख से ज़रा नकाब
उठा दो मेरे हुजूर
जलवा फिर एक बार
दिखा दो मेरे हुजूर
किस जमाने के शायर होंगे ये जो चेहरे से नकाब हटवा रहे हैं। पर्दा, हिजाब और घूंघट तक तो ठीक है लेकिन नकाब आजकल कौन पहनता है भाई। और फिर नकाब हटाकर चेहरा किसको देखना है वहां तो उन्हें जलवा देखना है। हम तो अभी तक मुजरे को ही जलवा समझते थे।
कुछ बरस पहले तक स्कूटर पर चलने वाली लड़कियां और कामकाजी नारियां कुछ इसी तरह अपना चेहरा छुपाए चलती थी। असुरक्षा जैसा कुछ नहीं था धूप की गर्मी से त्वचा को नुकसान पहुंचता था और जो कुछ ब्यूटी पार्लर का कमाल था वह पसीने में बह जाता था।।
कोरोना काल में नकाबपोश बहुत बढ़ गए थे पुरुष हो या स्त्री बालक हो या बूढ़ा। शुक्र है, अब सबके चेहरे से नकाब उठ गया है और सब तरफ अब जलवा ही जलवा है।
वैसे तो रुख चेहरे को ही कहते हैं और रुखसार को गाल। लेकिन अगर हमसे रुख, चेहरा और मुखड़ा में अंतर पूछा जाए तो हम शायद नहीं बता पाएं। अगर बातचीत का रुख ही बदल जाए तो मतलब भी शायद बदल ही जाएगा।।
कुछ कुछ ऐसा ही मुखड़े के साथ भी है। मुखड़ा क्या देखे दर्पण में, तेरे दया धर्म नहीं मन में। एक मुखड़ा गीत में भी होता है। जब भी किसी गाने की शुरूआत होती है, तो गाने की शुरूआत की पहली दो या तीन पंक्तियों को मुखड़ा कहते है। किसी भी गाने में मुखड़े को किसी भी एक पंक्ति को हर अंतरे के बाद अक्सर दोहराया जाता है। मुखड़ा खत्म होने के बाद तुरंत अंतरा शुरू नहीं होता है। मुखड़े और अंतरे के बीच संगीत का इस्तेमाल किया जाता है।
यानी सिर्फ मुखड़े यानी चेहरे की एक झलक पाने के लिए शायर ने पूरा मुखड़ा ही लिख मारा;
रुख से जरा नकाब हटा दो मेरे हुजूर।
वह चाहता तो जलवे की जगह मुखड़ा भी लिख सकता था ;
मुखड़ा फिर एक बार
दिखा दो मेरे हुजूर …
लेकिन शायर को हुजूर के मुखड़े से अधिक अपने गीत के मुखड़े की पड़ी थी, इसलिए जलवा लिखने/दिखाने पर मजबूर हो गए। हर अंतरे के बाद वही मुखड़ा, माफ कीजिए, वही जलवा।।
होते हैं कुछ अंतर्मुखी उदासीन पति, जो शायरी वायरी नहीं समझते। ना उनकी नजर हुस्न के जलवों पर जाती है और ना ही कभी अपनी खूबसूरत बीवी के चेहरे पर।
जो इंसान ही बेरुखा हो वह क्या अपनी बीवी के सुंदर चेहरे की और रुख करेगा।
शायर तो पूरी कोशिश करता है, लेकिन जिस इंसान के अरमान ही सोए हुए हों उसे कौन जगाए। है कोई ऐसा नायाब तरीका, जिससे जो बेरूखे और बदनसीब पति हैं, उनका रुख अपनी पत्नी के सुंदर मुख की ओर हो जाए
और वे भी कह उठें ;
ए हुस्न जरा जाग
तुझे इश्क जगाए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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