श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “क्षमा वाणी…“।)
अभी अभी # 480 ⇒ क्षमा वाणी… श्री प्रदीप शर्मा
ऐसी वाणी बोलिए
मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे,
आपहुं शीतल होए …
कबीर वाणी
एक कहावत है जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन।
अक्सर लोगों की दो ही पसंद होती है मीठा अथवा तीखा। खुशी के मौके पर और वार त्योहार पर मीठा बनाना और मीठा खिलाना यह हमारी परंपरा रही है।
हां स्वादिष्ट भोजन में अचार पापड़ और चटनी का भी महत्व होता है। मीठा खाकर और खिलाकर अक्सर मीठा ही बोला जाता है।
क्या भोजन की तरह ही जबान भी मीठी और तीखी होती है। जो मीठा होता है वह मधुर होता है। मिर्ची खाने में तीखी होती है, क्या किसी को बोलने से भी मिर्ची लग सकती है। जो मुंह से आग उगलते हैं वे क्या खाते होंगे।।
यह इंसान केवल अपने से बड़े और शक्तिशाली व्यक्ति के सामने ही झुकना पसंद करता है ईश्वर सर्वशक्तिमान है इसलिए उसके सामने झुकना गिड़गिड़ाने और नाक रगड़ने में उसे कोई परेशानी नहीं होती लेकिन अपने से छोटे अथवा बड़ा बराबरी के लोगों के सामने भी वह झुकना पसंद नहीं करता। जब उसका अहंकार सातवें आसमान पर पहुंच जाता है तब तो वह अपने से बड़ा और किसी को मानता ही नहीं।बस यही तो आसुरी वृत्ति है।
माफ़ करना, और माफ़ी मांगने में जमीन आसमान का अंतर है। जो लोग माफ करना ही नहीं जानते,
वे क्या किसी से माफ़ी मांगेंगे ;
To err is human, to forgive divine”
Alexander Pope
“गलती करना मानवीय है और क्षमा करना ईश्वरीय है”। इस उद्धरण का मतलब है कि कोई भी इंसान परिपूर्ण नहीं है और हम सभी गलतियां करते हैं. इसलिए, हमें दूसरों को क्षमा करना चाहिए और खुद को भी माफ़ करना चाहिए।।
उत्तम क्षमा वही है जिसमें मन वचन और कर्म , तीनों तरह के अपराधों के लिए क्षमा मांगी जाए। हमारी संस्कृति और संस्कार हमें ना केवल जीवित आत्मीय जनों के प्रति प्रेम और क्षमा का अवसर प्रदान करते हैं, अपितु जो हमारे आत्मीय दिवंगत हो गए हैं, उनके प्रति भी श्रद्धा और तर्पण का आदर्श प्रस्तुत करतें हैं। जरा क्षमा पर्व और पितृ पक्ष में समानता तो देखिए ;
क्षमा याचना, श्राद्ध पक्ष के दौरान की जाने वाली एक प्रार्थना है. श्राद्ध पक्ष में, पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिए क्षमा मांगी जाती है और पितृ दोष से मुक्ति के लिए प्रयास किए जाते हैं. श्राद्ध पक्ष के दौरान, पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण और पिंडदान जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं।
श्रद्धा और क्षमा जैसे सात्विक भाव किसी भी प्रकार के जप, तप से कम नहीं। हमने क्षमा का स्थायी भाव अपने जीवन में कितनी खूबसूरती से उतार लिया है, सिर्फ एक अंग्रेजी शब्द सॉरी बोलकर। माफ कीजिए और क्षमा कीजिए तो हमारे तकिया कलाम बन चुके हैं।।
लोक व्यवहार में हमने मध्यम क्षमा और तीव्र क्षमा का मार्ग अपना रखा है। मध्यम क्षमा, हम जब भी किसी बात से असहमत होते हैं, तो कह उठते हैं, क्षमा कीजिए, मैं आपसे सहमत नहीं हूं और उठकर बाहर चले जाते हैं। तीव्र क्षमा में पढ़े लिखे, सुसंस्कृत लोग जब छींकते अथवा खांसते हैं, तो साथ में एक्सक्यूज मी कहना नहीं भूलते। स्टार प्लस की हमारी मां अनुपमा का तो तकिया कलाम ही सूरी, सूरी, सूरी यानी सॉरी, सॉरी, सॉरी है।
क्षमा को वीरों का आभूषण कहा गया है। लेकिन युद्ध में जहां जीत हार और मरने मारने का समय आता है, तब ना तो किसी को माफ किया जाता है और ना ही शत्रु से माफी मांगी जाती है। होते हैं कुछ मथुराधीश जैसे लीलाधारी रणछोड़ भी, जो मथुरा छोड़ द्वारकाधीश बनकर सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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