श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – “कयामत से इनायत तक…“।)
अभी अभी # 484 ⇒ कयामत से इनायत तक… श्री प्रदीप शर्मा
कुछ सांसें लेना छूट गईं,
कुछ सांसें बीच में ही उखड़ गईं।
हम भी लड़खड़ाए,
दो घूँट पानी पिया,
दो घूँट गम। ।
थोड़ा लिया दम
और फिर चल पड़े हम।
साँसों का हिसाब,
सुना है
ऊपर वाला रखता है। ।
गिनकर देता है,
जेब खर्च की तरह
और बाद में
हिसाब मांगता है।
ये चल रही सांसें भी,
किसी की अमानत है,
इनमें खयानत ना हो। ।
जो सांसें बीच में छूटी हों
उनकी भी हिफाजत हो।
जिंदगी एक जश्न हो …
चाहे कयामत हो। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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