श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एकांगी प्रेम…“।)
अभी अभी # 487 ⇒ एकांगी प्रेम… श्री प्रदीप शर्मा
ये रास्ते हैं प्यार के, कहीं खुली सड़क है, तो कहीं साजन की गलियां हैं। प्रेम की गली को तो बहुत ही संकरी बताया गया है। प्रेम कहीं आलंबन है तो कहीं बंधन। यहां धोखा भी है रुसवाई भी। यहीं सूर भी है और मीराबाई भी।
ताली भले ही एक हाथ से नहीं बजती हो, प्यार का आवागमन तो नो व्हीकल जोन में भी देखा जा सकता है। जहां हवा में और सांसों में भी प्यार की खुशबू हो, वहां वादियों में भी शहनाई की गूंज सुनाई देती है। ये किसने गीत छेड़ा।।
प्यार एक आकर्षण है, भक्ति इसी का परिष्कृत स्वरूप है। कहते हैं प्यार में लेन देन होता है, दिल दिया और दिल लिया जाता है। कुछ इसे सौदा भी कहते हैं, और कुछ व्यापार भी। लेकिन कुछ लुटेरे अगर दिल ही लूटकर ले जाए, तो किससे शिकायत की जा सके, कौन से थाने में रपट लिखाई जा सके।
कहते हैं, प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है। आज तक ऐसा कोई रिमोट कंट्रोल देखने में नहीं आया, जिसे दबाने से किसी का प्यार जाग जाए। यहां सिर्फ दिल की धड़कन सुनी जाती है, घड़ी की तरह जब दो दिल एक साथ धड़कते हैं, तो प्रेम का श्रीगणेश हो जाता है।।
प्रेम एक सहज अभिव्यक्ति है, जिसमें निष्ठा, त्याग, समर्पण और आसक्ति भी है। प्रेम खुद से नहीं किया जा सकता। ईश्वर भी अगर केवल अपने आप से ही प्रेम करता तो इस सृष्टि का सृजन ही नहीं होता। सृजन का नाम ही प्रेम है। मां का अपनी संतान के प्रति प्रेम नैसर्गिक प्रेम है, जिसमें ममता का भाव है। माता पिता का बच्चों के प्रति जो प्रेम होता है उसमें प्रेम के साथ कर्तव्य भी शामिल होता है तो पति पत्नी के बीच प्रेम के साथ समर्पण भी देखा जा सकता है।
कहते हैं, एक उम्र में सबको प्रेम होता है, कहीं प्रेम का पौधा पल्लवित होता है, तो कहीं सूख जाता है। यह जरूरी नहीं कि आप जिसे चाहें, वह भी आपको ही चाहे। उसको आपके प्रेम की परवाह नहीं, तो क्या आपका यह प्रेम एकांगी नहीं हुआ। तब आप क्या करेंगे, उफ ना करेंगे, लब सी लेंगे, आंसू पी लेंगे। दुनिया में आग लगाने से तो रहे।।
प्यार में इंसान या तो पागल होता है, या फिर दीवाना। कवि और शायर प्यार का मीठा अथवा कड़वा घूंट पिए बिना नहीं रह सकते। शायर तो कह उठता है,
तुम अगर मुझको न चाहो, तो कोई बात नहीं। तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी।
समझ में नहीं आता, यह शिकायत है या धमकी।
कुछ त्यागी किस्म के एकतरफा आदर्श प्रेमी भी होते हैं। उनकी प्रेम की ऊंचाई तो देखिए जरा !
तुम मुझे भूल भी जाओ, तो ये हक है तुमको। मेरी बात और है, मैने तो मोहब्बत की है।।
प्रेम के कई स्वरूप हैं। दया, ममता, करुणा, भक्ति भाव, और समर्पण सभी में प्रेम तत्व समाया हुआ है।
Work is worship यानी कहीं कर्म में ही ईश्वर को खोजा जा रहा है। अल्कोल्हिक की तरह लोग वर्कोल्हिक भी होने लग गए हैं। काम प्यारा होता है, चाम नहीं। इन्हें कोई समझाए, सुबह और शाम, क्यूं नहीं लेते भैया, प्यार का नाम।
सफलता और असफलता प्रेम में भी होती है। अपेक्षा और उपेक्षा का खेल यहां भी चलता है। कहीं प्रेम प्रकट होता है तो कहीं उस पर संकोच, हिचक, हया और उदासीनता का पर्दा पड़ा रहता है। खुलकर प्रेम करने के लिए खुलकर हंसना पड़ता है। कुछ लोग जो केवल मुस्कुराकर रह जाते हैं उनका प्रेम भी दो कदम आगे नहीं पड़ पाता।
प्रेम के खुले प्रदर्शन के प्रति उदासीनता का भाव एक गंभीर और परिपक्व किस्म के प्रेम का परिचायक होता है, जिसे बहुत कम महिलाएं समझ पाती हैं। प्रदर्शन में कितना सच है और कितना बनावटीपन और दिखावा, कौन जान सकता है।।
नारेद भक्ति सूत्र में नवधा भक्ति का रहस्य है। प्रेम पुजारी तो कई हैं, लेकिन संत वेलेंटाइन की तरह वृंदावन के कृष्ण कन्हैया के पश्चात् आज प्रेम का पाठ पढ़ाने वाला कोई नहीं। अंदर नफरत और ऊपर से दिखावटी प्यार की यह औपचारिकता फिर भी हम निभाते ही चले आ रहे हैं।
आओ प्यार करें..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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