श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “भक्ति और आराधना …“।)
अभी अभी # 500 ⇒ भक्ति और आराधना श्री प्रदीप शर्मा
शारदेय नवरात्रि माता की भक्ति और आराधना का पर्व है। भक्ति में शक्ति है और शक्ति में पुरुषार्थ !जप, तप, उपवास भी भक्ति का ही स्वरूप है, मन को सांसारिक विषयों से हटाकर अपने आराध्य में लीन होने का अभ्यास है। माता का वास पहाड़ों में है, गुफाओं में है। हमारी माता पहाड़ों वाली है, वह स्कूटी पर सवार नहीं, शेरां वाली है।
शेर की सवारी कोई निर्भय और निडर ही कर सकता है। पहाड़ों और गुफाओं में भक्ति है, विवेक है, वैराग्य है। हमारे जीवन में भी पहाड़ों की कमी नहीं। कभी मुसीबत का पहाड़ तो कभी अहंकार का पहाड़। शेर की सवारी तो छोड़िए, हम तो छिपकली से ही डर जाते हैं। माता की आराधना हमें विकारों से दूर करती है, हममें शक्ति का संचार करती है और हमें निर्भय और निडर बनाती है। एक अबोध बालक के लिए उसकी मां का आंचल ही दुनिया में सबसे सुरक्षित स्थान होता है।।
हमने अपनी जन्मदायिनी मां के साथ नौ महीने उसके उदर में बिताए, वहां भी हमारा पालन पोषण और भरण पोषण हुआ, मां के रक्त ने ही हमें सींचा और हम एक स्वस्थ जीवन प्राप्त कर इस धरा पर अवतरित हुए। एक मां ने अपना पुत्र धरती मां को सौंप दिया। तेरा तुझको अर्पण, और हमारी किलकारी शुरू। हम बड़े होते गए, मां से दूर होते गए, अपनी मातृभूमि को भी छोड़ प्रवासी हो गए।
जीवन में सभी भौतिक उपलब्धियां, फिर भी प्रेम और ममता का अभाव, स्वार्थ और आसक्ति का भाव, फिक्र, चिंता और डर का भाव। ऐसी परिस्थिति में क्यों न कुछ दिन गुजार दें मां के सत्संग, ध्यान और आराधना में। इस बार नौ महीने ना सही, नौ दिन ही सही। हम जब जन्म के पहले, अपनी मां में ही समाए थे, तब नौ महीने उनका ही तो सहारा था। क्या उसने कभी हमें भूखा, प्यासा रखा ? आपको याद नहीं, मां को सब याद है। वह तब भी मां थी, आज भी मां ही है। आप मानें, ना मानें, मां, मां ही होती है। सबकी अपनी अपनी मां होती है। मां सबकी होती है।।
शक्ति अर्थात् शारीरिक बल तो हमें, पौष्टिक भोजन से मिल ही जाता है। बादाम, बोर्नविटा, बूस्ट, और इतनी मल्टीविटामिन गोलियाँ उपलब्ध हैं बाज़ार में फिर मां से हमें कौन सी शक्ति चाहिए। क्यों रात्रि जागरण और माता का जगराता। हमारे अंदर शक्ति का भंडार है, वही शक्ति हमारे चित्त के साथ संयुक्त होकर काम करती है। अब आपका चित्त कैसा है, यह आप जानो। डाकू भी जय भवानी कहकर ही डाका डालते हैं और जिनमें कई सफेदपोश भी होते हैं। अज्ञान और अंधकार में जब हमारी चैतन्य शक्ति सोई पड़ी रहती है, तब आसुरी शक्ति प्रबल हो जाती है। हमारी सोई शक्ति को जगाना ही शक्ति का जागरण है, जगराता है। इसे ही ज्ञानवती कुंडलिनी शक्ति कहते हैं। मूलाधार निवासिनी यह चेतन शक्ति उर्ध्वमुखी हो, सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्रार में प्रवेश कर जाती है। भक्ति, ज्ञान और विवेक के बिना शक्ति का जागरण संभव नहीं। हां, आसुरी शक्ति तो जगी जगाई है।
बस उसी मां की गोद में फिर से नौ दिन जाने का अवसर है यह नवरात्रि उत्सव। वह जैसा रखे, रह लीजिए, जो खिलाए, प्रेम से खा लीजिए। नौ दिन का तो यह अभ्यास है। मां ने जो नौ महीने आपको पाला है, उसका ऋण केवल नवरात्रि की आराधना और उपवास से नहीं चुकाया जा सकता। नवरात्रि पर्व शक्ति संचय और आराधना का ही सबब नहीं, मां के सद्गुणों को आत्मसात करने का भी पर्व है। मां अपने पुत्र को प्यार भी करती है और गलती करने पर दंडित भी करती है, लेकिन कभी किसी से नफरत नहीं करती। मां बलि देती है, कभी बलि लेती नहीं। अगर बलिदान देना ही है तो राग, द्वेष, निंदा, लोभ और मत्सर का दें। माता अति प्रसन्न होगी। हमें आशीर्वाद देगी। हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरी करेगी। जय माता दी।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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