श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सौन्दर्य बोध…“।)
अभी अभी # 509 ⇒ सौन्दर्य बोध श्री प्रदीप शर्मा
(ASTHETIC SENSE)
जब भी सुंदरता की बात होती है, चंदन सा बदन, चंचल चितवन, से आगे बात ही नहीं बढ़ती। नारी सौंदर्य की मूरत है, बस यही बोध पर्याप्त है। सारे कवि और शायर भी घूम फिरकर यही कहना चाहते हैं लेकिन सौंदर्य का एक कला पक्ष भी होता है, जो कहीं ना कहीं उसे व्यक्ति परक नहीं, वस्तुपरक बनाता है। वस्तु के इस कलात्मक पक्ष को ही asthetic sense, यानी सौंदर्य बोध का नाम दिया गया है।
कला, सौंदर्य और सुरुचि का नाम ही सौंदर्य बोध है। जब हम किसी ऐसे घर में प्रवेश करते हैं, जहाँ सब कुछ व्यवस्थित, ठिकाने पर हो, घर की हर वस्तु आपको आकर्षित करती हो, जिसमें घर में रहने वाले का व्यवहार और पहनावा भी शामिल हो, चलने का तरीका, बोलने का तरीका, हँसने से लेकर खाते समय मुंह चलाने तक का तरीका आकर्षित करता हो, तो आप कह सकते हैं कि उस व्यक्ति में एस्थेटिक सेंस यानी सौंदर्य बोध है।।
आप सौंदर्य को सभ्यता और संस्कृति से अलग नहीं कर सकते। जिसे हम तहज़ीब, manner अथवा एटिकेट कहते हैं, उसकी तह में बोलने अथवा बात करने का लहजा भी मायने रखता है। किसी का सुरुचिपूर्ण व्यवहार यानी polished behaviour आपको कभी कभी कृत्रिम भी लगे, लेकिन जो लोग इसमें ढल जाते हैं, उनकी सहजता और सरलता उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती है।
आप मुझे अच्छे लगने लगे ! सौंदर्य बोध का इससे अच्छा उदाहरण और कोई नहीं हो सकता। यहाँ अनुभूति का स्तर, देह से बहुत ऊपर उठ गया है, जिसमें अगर एक अबोध बच्चे की खुशी भी शामिल है तो एक आत्मा का दूसरी आत्मा के प्रति अपनापन, जो कहीं कहीं परमात्मा के करीब है। क्योंकि जो वाकई अच्छा है, वही सत्य है, शिव है और सुंदर है।।
आपको भगवान मंदिर में नहीं मिलेंगे, इंसानों में ही मिलेंगे। खेत, खलिहानों, बाग बगीचों, हरी भरी वादियों, पहाड़ों और झरनों में ही उस विराट की प्रतीति ही सौंदर्य बोध है। संगीत, ध्यान, कला, नृत्य और अध्यात्म उसके विभिन्न अवयव हैं। यह गीता का वह ज्ञान है, कर्म की कुशलता जिसका पहला अध्याय है, तो निष्काम कर्म अंतिम।
अमीरी गरीबी से ऊपर, सुख दुःख के बीच, सरलता, सहजता, निष्पाप मन, निर्विकार चेष्टा, मानव मात्र के प्रति शुभ संकल्प का भाव, प्राणी मात्र के कल्याण की भावना और प्रकृति और पर्यावरण से प्रतीति ही सौंदर्य बोध है। अंदर और बाहर से व्यवस्थित होना ही व्यवस्था है। प्रकृति में जहाँ भी सौंदर्य है, वह व्यवस्थित और अनुशासित है। पक्षियों का उड़ना, शाम को अपने घर लौटना, फूल का खिलना, भौंरों का गुनगुनाना, नदियों का बहना, सभी इस व्यवस्था के अंग हैं, इसीलिए उनमें सौंदर्य बोध है। हमें कोई दूसरी दुनिया नहीं बसानी। इसी को व्यवस्थित करना है। हमारी दृष्टि बदलने से समष्टि बदल जाती है। दृष्टि में ही सौंदर्य बोध है। जब सृष्टि इतनी सुंदर है, तो इसका रचयिता कितना सुंदर होगा।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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