श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “जलना और जंग लड़ना…“।)
अभी अभी # 510 ⇒ जलना और जंग लड़ना श्री प्रदीप शर्मा
हमारे जीवन का भौतिक विज्ञान का पहला पाठ पदार्थ के जलने और जंग लगने, अर्थात् rusting and burning से हुआ था। प्रश्न भी कुछ इस तरह का रहता था, जलने और जंग लगने में अंतर बताओ। बही खाते में आय व्यय की तरह, पुस्तक में बायीं ओर जलना और दांयीं ओर जंग लगना, लिखा रहता था। जो आगे चलकर भौतिक जगत के व्यवहार में जलने और जंग लड़ने में अंतर करते करते गुजर गया।
जो जीवन कभी चलने का नाम था, वह कब जलने का नाम हो गया, कुछ पता ही नहीं चला। एकाएक जंग लगी इस जिंदगी में उबाल आया और जिंदगी की जंग शुरू हो गई। जीवन की इस प्रतिस्पर्था में यह जलन बहुत काम आई। महत्वाकांक्षा और आगे निकलने की इस दौड़ में, चलना और जलना साथ साथ चले, जिसके कारण अपने से आगे निकलने वाले को टांग मारकर गिराना, अथवा धक्का देकर आगे बढ़ना आम था। खास बनने के लिए आम से जलना भी पड़ता है। जलने और जंग लड़ने में सब जायज़ होता है। Everything is fair in jealousy and war.
बिना दीया जलाए भी कहीं रोशनी हुई है। सीने में जलन और आँखों में इतने समय से तूफान क्यूं था, और उस वक्त, हर शख्स परेशान सा क्यूं था, यह अब पता चला। जिंदगी के तूफान और दीये की यह जंग बहुत पुरानी है। जंग अभी जारी है, यह आग कब बुझेगी, कोई जाने ना ;
तेरा काम है परवाने जलने का।
चाहे शमा जले, या ना जले।।
जीवन में जंग लग जाने से बेहतर है, कुछ किया जाए ! क्यों न व्यर्थ जलने के बजाए उंगली कटाकर ही शहीद हुआ जाए। जब से इस इंसान ने आग का आविष्कार किया है, उसे जलने, जलाने में बड़ा आनंद आता है। उसके अंदर भी एक आग है, और बाहर भी एक आग। गुलजार बड़ी खूबसूरती से अपने जिगर की आग को पड़ोसी के चूल्हे की राख से, बीड़ी जलाकर और अधिक प्रज्वलित कर देते हैं और राखी को राखी सावंत बनते देर नहीं लगती।
प्रेम और इश्क में अगर ढाई अक्षर होते हैं तो जंग में भी ढाई आखर ही होते हैं। इसीलिए हम प्यार में जलने वालों को, चैन कहां, आराम कहां। हम भी अजीब हैं, कभी प्यार में जलते हैं, तो कभी किसी के प्यार से जलते हैं। और कई बार ऐसा मौका आया है जिंदगी में, कि दर्द छुपाए नहीं छुपता। आखिर जुबां पर आ ही जाता है ;
गुज़रे हैं आज इश्क के
हम उस मुकाम से।
नफ़रत सी हो गई है,
मोहब्बत के नाम से।।
ये नफरत मोहब्बत, ये प्यार मोहब्बत, ये जलना और जंग लड़ना लगता है, अब जीवन का एक आवश्यक अंग बन गया है, और जीवन का काफिया कुछ यूं बयां हो गया है ;
जीवन जलने का नाम
जलते रहो सुबहो शाम।
जिंदगी एक जंग है कर दो ये ऐलान। ये आग तब ही बुझेगी। ।
वैसे आज जलने का नहीं, केवल एक प्रेम का दीप जलाने का अवसर है। जब दीप जले आना, जब सांझ ढले आना। शुभ दीपावली। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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