श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सिने संगीत…“।)
अभी अभी # 517 ⇒ सिने संगीत… श्री प्रदीप शर्मा
HINDI FILM SONGS
फिल्मी गीत भारतीय हिंदी फिल्मों की जान हैं। फिल्म जहां एक सशक्त दृश्य श्रव्य माध्यम है, वहीं फिल्मी गीतों का केवल सुनकर भी आनंद उठाया जा सकता है। सुर के बिना जीवन सूना, सुर ना सजे क्या गाऊँ मैं ;
संगीत मन को पंख लगाए
गीतों में रिमझिम रस बरसाए
स्वर की साधना
परमेश्वर की।
जो फिल्मी गीत हम सुनते हैं, उसे पहले एक गीतकार लिखता है, फिर संगीतकार उसकी धुन बनाता है और उसके बाद एक गायक उसे गाता है। चूंकि यह सब एक फिल्म हिस्सा होता है, इसलिए इसे फिल्मी गीत कहा जाता है। जितना पुराना फिल्मों का इतिहास है उतना ही पुराना इतिहास फिल्मी गीतों का भी है।।
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें,
हम दर्द के सुर में गाते हैं।
जब हद से गुज़र जाती है खुशी,
आँसू भी छलकते आते हैं;
बताइए, अब इसमें फिल्मी क्या है। गीत सुनते ही जिज्ञासा होती है, इतना अच्छा गीत किसने लिखा, जवाब आता है, शैलेन्द्र ने। सुनते ही समझ में आ जाता है, इसे तलत महमूद ही गा सकते हैं। जहां शैलेन्द्र हैं, वहां संगीत भी शंकर जयकिशन का ही होगा। इतना अच्छा गीत फिल्म पतिता का ही हो सकता है।
यह तो संगीत के महासागर से सिर्फ एक मोती ही निकाला है हमने। आप अगर इसमें एक बार डूब गए तो समझो तर गए। कितने गीतकार, कितने संगीतकार, कितने गायक गायिकाएं और कितनी फिल्में। और आपके पास बस एक जीवन। अगर आप सौ बार जनम लेंगे, तब भी यह संगीत की दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी। हमारा शरीर तो नश्वर है, लेकिन संगीत अमर है।।
ऐसा क्या है इन गीतों में कि “दूर कोई गाये, धुन ये सुनाये” और हम खो जाएं। इन गीतों में प्रेम है, विरह है, मिलन है, दर्द है, खुशी है, आंसू हैं, मुस्कान है। एक अच्छे श्रोता बनने के लिए आपको किसी डिग्री डिप्लोमा की आवश्यकता नहीं। घरों में सुबह होते ही रेडियो शुरू हो जाता था। आज रेडियो मिर्ची का जमाना है। हमारे समय में आकाशवाणी और रेडियो सीलोन था, विविध भारती था। किसी घर में रेडियो तो किसी घर में ट्रांजिस्टर था। शौकीन लोगों के घर में ग्रामोफोन अथवा रेकॉर्ड प्लेयर भी होता था। तब कहां सीडी/वीडी और यूट्यूब था।
पुराने गीत अधिक कर्णप्रिय और मधुर होते थे। क्या कारण है कि साहित्य और कविता आम आदमी तक नहीं पहुंच पाई और फिल्मी गीत हर किसान, मजदूर, साक्षर और निरक्षर तक आसानी से पहुंच गए। हर घर में आज आपको एक गायक मिलेगा, भले ही वह बाथरूम सिंगर हो। लेते होंगे आप भगवान का नाम नहाते वक्त, हम तो जो गीत सुबह रेडियो पर सुन लेते हैं, वही नहाते वक्त गुनगुनाने लग जाते हैं।
ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए, गाना आए या ना आए, गाना चाहिए।।
मुझे शास्त्रीय संगीत का सारेगामा भी नहीं आता, लेकिन जो भी पुराना गीत मैं सुनता हूं, वह जरूर किसी राग पर आधारित होता है। जब साहिर, शैलेन्द्र, हसरत, मजरूह, कैफ़ी आज़मी, शकील बदायूंनी, नीरज, भरत व्यास, प्रदीप और रवींद्र जैन जैसे गीतकार लिखेंगे और नौशाद, अनिल बिस्वास, सी रामचंद्र, सलिल चौधरी, रवि, रोशन, मदनमोहन, एस डी बर्मन, शंकर जयकिशन और लक्ष्मी प्यारे जैसे संगीतकार उनकी धुन बनाएंगे, और नूरजहां, सुरैया, खुर्शीद, लता, आशा, सुमन और सहगल, रफी, मुकेश, किशोर, मन्ना डे जैसे गायक गायिकाओं की आवाज होगी, तो हम तो बस यही कह पाएंगे ;
दिल की महफिल सजी है चले आइए।
आपकी बस कमी है
चले आइए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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