श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी कविता – “ऽऽऽ.. नींद में …ऽऽऽ…“।)
अभी अभी # 518 ⇒ ऽऽऽ.. नींद में …ऽऽऽ श्री प्रदीप शर्मा
मुझे नींद नहीं आई रात भर
यकीनन मैं जाग भी नहीं रहा था
बस करवटें बदल रहा था;
मैंने कभी नींद को आते हुए नहीं देखा
उसके आने के पहले ही मैं सो जाता था
और उसके जाने के पहले ही जाग जाता था ;
मैं जब करवटें बदलता हूं
तो अक्सर सोचा रहता हूं
रात को किस करवट सोया मुझे याद नहीं
मैं सुबह किस करवट उठा यह भी मुझे याद नहीं ;
बहुत सोचा कि
रात भर जाग कर नींद की पहरेदारी करूं
वह कब आती है कब जाती है उसकी चौकीदारी करू ;
लेकिन वह कहां खुले आम आती है
अक्सर बिल्ली की तरह
दबे पांव आती है
और चुपचाप चली जाती है ;
यही हाल सपनों का है
मैं सपनों को देखना चाहता हूं
लेकिन उसके पहले ही मुझे नींद आ जाती है ;
मैं सपनों को देखता जरूर हूं
लेकिन उन पर मेरा हुक्म नहीं चलता
एक बिगड़ी औलाद की तरह
जब चाहे आते हैं
जब चाहे चले जाते हैं
बस मनमानी किए जाते हैं ;
उन पर मेरा कोई बस नहीं
वे कहां,कभी मेरा कहा सुनते हैं
फिर भी एक औलाद की तरह
मुझे उनसे प्रेम है ।।
मैं चाहता हूं मैं जाग जाऊं
अपनी नींद भगाऊं ,
सपना भगाऊं
लेकिन क्या करूं मुझे नींद ही नहीं आती
बस करवटें बदलता रहता हूं ।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈