श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सौन्दर्य बोध…रिश्वत और शराब“।)
अभी अभी # 519 ⇒ रिश्वत और शराब श्री प्रदीप शर्मा
रिश्वत और शराब समाज की आवश्यक बुराइयां हैं।
दोनों का अपना अपना इतिहास है। जो कभी तोहफ़ा था, वह अंग्रेजों के जमाने में बख्शीस हुआ और बाद में कांग्रेस के राज में वह रिश्वत कहलाने लगा। सनातन समय से मदिरा अगर असुरों से जुड़ी हुई है, तो देवता स्वर्ग में सोमरस का पान करते हुए अप्सराओं के नृत्य का आनंद लेते रहते थे। ग़ालिब ने शराब को बहुत मशहूर कर दिया और इसी शराब ने बाद में शरीफजादों को बदनाम कर दिया। मैं शायर बदनाम।
शराब और रिश्वत, खाते पीते लोगों की पहचान है क्योंकि रिश्वत खाई जाती है, और शराब पी जाती है। शरीफ लोग शराब और शराबी से तौबा करते हैं, जब कि रिश्वत लेना और देना दंडनीय अपराध है।
वैसेअगर आप रिश्वत लेते हुए पकड़े गए हो, तो रिश्वत देकर छूट भी सकते हो। ।
वैसे ईश्वर की निगाह में हर जीव बराबर है। वह तो पतित पावन है, पापियों को वह पहले तारता है। साहिर शराब को बुरा नहीं मानते। वे तो साफ साफ कहते हैं ;
मैंने पी शराब,
तुमने क्या पीया
आदमी का खू़न ?
शराब गरीब की मजबूरी है और अमीरों का शौक। शराब कड़वी जरूर है, लेकिन इसे मीठा जहर कहा गया है। वाइन और अल्कोहल में आम आदमी फ़र्क नहीं समझता। वैसे हर बीमार का इलाज दवा दारू से ही तो होता है क्योंकि अधिकांश दवाइयोंमें कुछ प्रतिशत अल्कोहल की मात्रा जरूर होती है।
एक बार तो पुदीनहरा में पांच प्रतिशत तक अल्कोहल पाया गया था। जिंजर टॉनिक में भी जबरदस्त अल्कोहल होता है।
देसी शराब गरीबों के लिए बनी है और विदेशी अमीरों के लिए। लेकिन सरकार का समाजवाद देखिए, आजकल दोनों एक ही जगह उपलब्ध हो रही है। मंदिर मस्जिद ही नहीं, अमीरों और गरीबों में भी तो मेल करा रही है आज की शासकीय मधुशाला। ।
जो शराब को छूते तक नहीं, उन्हें रिश्वत से कोई परहेज नहीं होता। क्योंकि भारतीय मुद्रा एक जैसी होती है। रिश्वत के लिए किसी विशेष मुद्रा की सरकार ने व्यवस्था नहीं की है। अगर कोई अधिकारी नकली नोटों की रिश्वत लेते पकड़ा जाएगा, तो उसका अपराध और अधिक संगीन हो जाएगा। वैसे इस धंधे में पूरी ईमानदारी होती है और नोट भी असली ही होते हैं।
एक शराबी के मुंह से तो फिर भी शराब की बू आ सकती है लेकिन आप जिन सज्जन से गले मिल रहे हैं, उन्होंने जीवन में कभी रिश्वत ली या नहीं ली, यह या तो वे स्वयं जानते हैं, अथवा भगवान।
वैसे दान पुण्य में अगर रिश्वत का कुछ प्रतिशत दे दिया जाए, तो पुण्य ही अर्जित होता है, पाप नहीं। ।
दुनिया में कुछ अच्छा बुरा नहीं। सबसे बुरा है, अपराध बोध। बस आपको अपराध का बोध ना हो, वर्ना बिना कुछ किए ही आप अवसादग्रस्त हो जाएंगे। जिन लोगों में व्यवहार कुशलता नहीं, होती वे महज ईमानदारी और आदर्शों का ढिंढोरा पीटा करते हैं। ऐसे ढोंगियों से बचिए। केवल अपनी अंतरात्मा की सुनिए ..!!
दुनिया की निगाहों में
भला क्या है बुरा क्या ?
ये बोझ अगर सर से
उतर जाए तो अच्छा। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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