श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पाँव छू लेने दो…“।)
अभी अभी # 520 ⇒ पाँव छू लेने दो श्री प्रदीप शर्मा
पाँच छूना भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख लोक-व्यवहार है ! उम्र में बड़े लोगों को सम्मान देने की यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें उनके झुककर पाँव छूए जाते है, जिसके बदले में वे आशीर्वाद-स्वरूप जीते रहो, सुखी रहो अथवा दूधों नहाओ, पूतों फलो, जैसे उद्गार प्रकट करते रहते हैं।
पाँव छूना, अहंकार को गलाता है ! चूँकि झुकना, पाँव छूने की प्रमुख प्रकिया है, अतः ऐसा माना जाता है, कि झुकने से अहंकार गलित हो जाता है। जो बड़े बूढ़े होते हैं, उन्हें झुकने की मनाही होती है। अधिक न झुकने से घुटने की बीमारी हो जाती है। पहलवानों का सीना चौड़ा होता है, और घुटने कमज़ोर। डॉक्टर भी उन्हें कम ज़ोर लगाने की सलाह देता है, झुकने के लिए मना करता है, और वे कमोड पर आ जाते हैं।।
जिन पहाड़ों पर ज़्यादा धूप नहीं आती, वहाँ बारहों महीने बर्फ़ जमा रहती है। बर्फ़ पहाड़ का अहंकार है, जो धूप-रूपी प्रेम से ही पिघलता है। बर्फ़ के पिघलते ही, अहंकार नदी का रूप लेकर प्रेम-सागर में जा मिलता है, पहाड़ उसी तरह तनकर खड़ा रहता है। बर्फ पहाड़ का अहंकार है और प्रेम-रूपी धूप बर्फ का पिघलना।
प्रेम में सर कटाया जाता है, झुकाया जाता है। स्वाभिमान में सर ऊपर रखा जाता है, वह कभी झुकता नहीं। पहाड़ की चोटियों तक पहुंचने वालों का भले ही कुछ समय के लिए सर, गर्व से ऊँचा हो जाए, पहाड़ की ऊँचाई कभी कम नहीं होती। अहंकार गल सकता है, स्वाभिमान कभी टूटता नहीं। क्योंकि पहाड़ कभी झुकता नहीं।।
पाँव छू लेने को धोक देना भी कहते हैं। ग्लोबल युग में यह औपचारिकता वीडियो फ़ोन पर भी निभाई जा सकती है। दादाजी यहाँ मज़े में हैं, और बेटा, बहू और पोता सुदूर सिएटल गाँव से वीडियो पर धोक दे रहे हैं। आठ साल से बेटा स्वदेश नहीं आया। दादी गुजरी थी, तब आया था। दादाजी से यहाँ की दोस्ती-यारी नहीं छूटती। यहाँ पूछ-परख है, सम्मान है। कोई पाँव छूता है, अच्छा लगता है।
धोक से कभी-कभी इंसान धोखा भी खा जाता है। वैसे भी क और ख में ज़्यादा दूरी नहीं ! राजनीति में पाँव छूना, धोक देना, किसी धोखे देने से कम नहीं। चुनाव के वक्त घर में आना, अनजान बुजुगों के साथ पाँव छूकर आशीर्वाद लेते हुए फ़ोटो खिंचवाना, और बाद में कभी मुँह नहीं दिखाना, महज दिखावा और धोखा नहीं है तो और क्या है।।
ऐसा कहा जाता है, बुजुर्गों का साया, खुशनसीबों को ही मिलता है। जब तक मिलता है, उसकी कीमत नहीं समझ में आती। साया हटते ही आसमान टूट पड़ता है। मंदिर में भगवान, और घर में पूजा-पाठ के वक्त पंडित जी के पाँव छूए जाते हैं। इनके अलावा किसी के पाँव छूकर आशीर्वाद लेने का मौका तो अब मिलता ही कहाँ है।
अपने घर के बुज़ुर्गों के पाँव अगर श्रद्धा और समर्पण के साथ छूए जाते, तो क्या वे वृद्धाश्रम का मुँह कभी देख पाते ! आजकल सम्पन्न घरों में बच्चा गोद लेने का चलन चल रहा है। कुँआरी अभिनेत्रियां समाज-सेवा के नाम पर बच्चे गोद ले रही है और बच्चे पाल उनके नौकर-नौकरानी रहे हैं। लेकिन बेसहारा बुजुर्गों को कोई गोद नहीं लेता . They are not so cute!
अधिक उम्र, अधिक साल-संभाल, सावधानी और सेवा माँगती है। छोटे परिवार नौकरियों और उच्च-शिक्षा के कारण और भी छोटे होते जा रहे हैं। अकेले बुजुर्ग सुबह की सैर और पास के बगीचे में थोड़ा वार्म-अप तो कर लेते हैं, लेकिन दिन भर बातों के लिए तरस जाते हैं। किसे फुर्सत, उनके पास बैठे, वही किस्से-कहानियाँ बार बार सुने। जिस घर में बच्चों की किलकारी आज भी मौजूद है, बस वे घर ही स्वर्ग हैं। बच्चे दिखावे के लिए पाँव नहीं छूते, दादाजी के सर पर सवार हो जाते हैं।।
कभी किसी अनजान बुजुर्ग के पाँव छूकर देखें और फ़िल्म ताजमहल का यही गीत दोहराएँ –
“पाँव छू लेने दो..
फूलों को इनायत होगी।”
मन से आशीर्वाद मिलेगा..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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