श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “वर्मा जी।)

?अभी अभी # 536 ⇒ वर्मा जी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आज बहुत दिनों बाद वर्मा जी सपने में दिखाई दिए।

उन्हें सपनों में ही आना था क्योंकि इस असली संसार से तो कई वर्ष पहले ही विदा ले चुके थे। वे मेरे फेसबुक फ्रेंड नहीं, मेरे अभिन्न मित्र थे, और बैंक में मेरे सहकर्मी थे। वे मेरे लिए कृष्ण भले ही ना सही, लेकिन एक सारथी अवश्य थे। हम शर्मा वर्मा के बीच कभी कोई विश्वकर्मा नजर नहीं आया।

वे अविवाहित थे इसलिए याद करते ही हाजिर हो जाते थे। वे वर्मा थे, इसलिए कायस्थ थे, उनके दो बड़े भाई और थे, लेकिन उनकी कोई बहन नहीं थी। पिताजी जब जीवित थे, तब कलेक्टर थे। मैने उनके माता पिता को नहीं देखा। पिताजी के गुस्सैल स्वभाव का अक्सर वे जिक्र करते थे, लेकिन मां के बारे में उन्होंने कभी कुछ नहीं बताया।।

जब तक उनकी भाभी रही, उनके लिए खाना बनाती रही, उनके देहांत के बाद उन्हें एक खाना बनाने वाली रखनी पड़ी, ताकि सुबह शाम उनको घर का खाना मिल सके।

उनकी दिनचर्या सुबह जल्दी शुरू हो जाती थी, नहा धोकर वे सराफा जाकर जलेबी पोहे नहीं खाते थे, अहिल्या केंद्रीय लाइब्रेरी में सुबह सुबह अखबारों का नाश्ता करते थे। अग्निबाण से लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया तक वे आसानी से पचा जाते। शहर की सनसनी घटनाओं में भी उनकी विशेष रुचि रहती थी।।

बौद्धिक कलेवे के बाद वे कॉफी हाउस आते थे, जहां कॉफी के साथ कुछ स्नैक्स और अन्य नियमित मित्रों के साथ चटपटा वार्तालाप उनकी दिनचर्या का अंग था। पश्चात् घर जाकर भोजन और बैंक के लिए रवानगी।

हमारी उनकी शामें अक्सर साथ साथ गुजरती। कभी एवरफ्रेश तो कभी जेलरोड के एटलस टेलर के यहां उन्हें नियमित देखा जा सकता था। तब हम लोगों की शाम अक्सर मित्रों के नाम ही होती थी। वैसे भी हम जैसे टी-टोटलर्स के लिए कॉफी हाउस ही पर्याप्त था।।

वर्मा जी जितना पढ़ते थे, उसके कई गुना अधिक बोलने की क्षमता रखते थे। उनकी धाराप्रवाह शैली उन्हें आत्म विश्वास प्रदान करती थी। वे सदा सत्ता से असहमत रहते थे, इसलिए असंतुष्ट रहते थे। उनकी भाषा असंयमित हो सकती थी, लेकिन अभद्र और अश्लील कभी नहीं। अत्यधिक आवेश में भी उनके मुंह से कभी कोई गाली नहीं फूटी।

वे कभी विचलित अथवा बोर नहीं होते थे। एक पुरानी तारीख के अखबार के सहारे वे आधा घंटा आराम से निकाल लेते थे। उन्हें किताबें खरीदने का अधिक और पढ़ने का शौक कम था फिर भी वे बहुत हद तक अपने आपको अपडेट रखते थे।।

वे कभी बहस में हार नहीं मानते थे। अपनी गलती पर अड़े रहना और सामने वाले को मैदान छोड़ने पर मजबूर करना उनकी विशेषता थी। कभी कभी उनके अनर्गल प्रलाप से शांति भंग होने का अंदेशा भी होता था, लेकिन मध्यस्थ सब शांत कर देते थे।

पहले उन्हें दिल की बीमारी लगी और बाद में शुगर की। अधिक शुगर के कारण एक घाव ठीक नहीं हो पाया, और पूरे शरीर में जहर फैल गया। उधर खाना बनाने वाली महिला, पहले उनकी परिचारिका बनी और बाद में दत्तक पुत्री बन, पूरे मकान की मालकिन। विवाह ना करने के बावजूद भी उनका अंतिम समय विवादों और तनाव में ही गुजरा।।

आज फेसबुक खोलने से पहले ही सपने में उनका मुस्कुराता फेसमुख नजर आ गया और बीती बातें याद आ गई। मैने अपना मित्र नहीं अपने परिवार का एक सदस्य खोया। तब से अपने राम अकेले हैं, सारथी जो साथ छोड़ गया …!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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