श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सबसे ऊंची, प्रेम सगाई …“।)
अभी अभी # 539 ⇒ सबसे ऊंची, प्रेम सगाई श्री प्रदीप शर्मा
मानते हैं, प्रेम अमर होता है, लेकिन जहां सगाई है, वहां आगे चलकर शहनाई भी तो बजनी चाहिए। जो विवाह की मर्यादा में विश्वास रखते हैं, वे पहले विवाह करते हैं और उसके पश्चात् प्रेम करते हैं। होता हैं, प्रेम विवाह भी होता हैं, लेकिन वहां भी चट मंगनी पट ब्याह होता है। जहां सिर्फ प्रेम सगाई है, और विवाह लापता है, माफ कीजिए वह प्रेम सगाई नहीं, लिव इन रिलेशन है।
आप अगर उधो से प्रेम की बातें करेंगे तो हम मर्यादा पुरुषोत्तम की बातें करेंगे। जिससे प्रेम सगाई, उससे केवल विवाह ही नहीं, एक पत्नीव्रत भी, फिर भले ही इसके लिए लक्ष्मण को दर्जनों शूर्पणखाओं की नाक ही क्यों ना काटनी पड़े।।
हम संसारी, संस्कारी जीव लोक लाज और मान मर्यादाओं से जकड़े हुए हैं। हमारे लिए विवाह एक अटूट बंधन है। हमारा प्रेम भी लौकिक ही होता है, आखिर देहधारी हैं, देहासक्त तो होंगे ही। हमारे जीवन में राम लीला के लिए तो स्थान है, रास लीला के लिए नहीं। मीरा और राधा की तरह हम अलौकिक प्रेम की बातें नहीं कर सकते।
हमारे संसार में सगाई को आजकल प्री – वेडिंग सेरेमनी कहते हैं, जी हां, वही राधिका – अनंत अंबानी वाली। कलयुग में कुछ लोग उसे अलौकिक भी मानते हैं, क्योंकि उसमें भव्यता भी थी और दिव्यता भी। लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम की तरह वहां भी अंततः शादी ही संपन्न हुई थी जिसमें मानो स्वर्ग की अप्सराएं और देवी देवता के साथ साधु संतों, महात्माओं, महामण्डलेश्वरों और शंकराचार्यों का आशीर्वाद भी शामिल था।।
हमारे आज के इस जगत में ना तो दुर्योधन का मेवा त्यागा जाता है और ना ही विदुर के साग से परहेज किया जाता है। कृष्ण ने अपने विपन्न मित्र सुदामा के पांव धोकर कोई तीर नहीं मार लिया, वह भी आज के नेताओं की तरह दलित के घर भोजन और लाडली बहना जैसी कोई टीआरपी बढ़ाने वाली लीला ही होगी। असली भक्त वही जो खंडन नहीं, अपने आराध्य का महिमामंडन करे।
जो छलिया, रसिया, माखनचोर कृष्ण कन्हैया है, वही समय आने पर कुरुक्षेत्र में अर्जुन को अपने विराट रूप का दर्शन करवाता है, शंख, चक्र, गदाधारी जिसके हाथों में कभी सुदर्शन चक्र है तो कभी तीर कमान। प्रेम हमारी कमजोरी नहीं ताकत है।
भक्तों के लिए अगर प्रेम की गंगा है तो दुष्टों के लिए महाकाल।
प्रेम के अलौकिक स्वरूप को पहचानना इतना आसान नहीं। प्रेम से ही प्रेम की उत्पत्ति होती है।
निश्छल, अनासक्त प्रेम जब परवान चढ़ता है तब ही प्रेम सगाई की स्थिति आती है। राग द्वेष अस्मिता और अहंकारमुक्त होता है शुद्ध असली अलौकिक प्रेम। नित्य शुद्ध और मुक्त होती है प्रेमवस्था। जहां बिना शर्त समर्पण है, बस वही है शायद सबसे ऊंची प्रेम सगाई।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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